१६ तारीख बीत चुके है ,चुनाव का पहला चरण अपने चरणों के निचे प्रत्यासियों का परिणाम दबाय खड़ा दुसरे चरण की और पग बढ़ा दिया है ,ये चुनाव इस बार कई चीजो के लिए यद् किया जाएगा खासकर मीडिया में पैसे के बदले मैनज ख़बर छपने और दिखाने के लिए , इसमे कोई दो राय नही की मीडिया ने इस चुनाव में आम जनता को गुमराह किया है ,चुनाव में मीडिया का गुप्त एजेंडा है पैसा नही तो ख़बर नही ,जिसके शिकार वो लोग हो गए जो बड़े उत्साह से ईमानदारी की जमा पूंजी के बदौलत लोकतंत्र के महापर्व में किस्मत आजमाने आए थे ,ऐसे ही एक युवक है गोरखपुर के राजन यादव जो लोकसभा केचुनाव लड़कर कुछ नया करने की सोच रहे थे इनोहने ६ माह से चुनाव की तयारी शुरू कर दी थी और लगातार जनता के बिच रहे इस दौरान राजन ने ग्रामीण एरिया में बहुत काम किया गरीबो के राशन कार्ड बनवाने से लेकर कोटेदार के खिलाफ धरने पे भी बैठे विधवा और विकलांग पेंसन के लिए लडाई लड़ी भुखमरी और बेरोजगारी के लिए जिमेवार लेखपाल से लेकर तहसीलदार के खिलाफ मोर्चा खोला कई बार जेल जाने की भी नौबत आई लेकिन ग्रामीणों के जनसहयोग के आगे राजन से परेशां गोरखपुर के जिला प्रशासन कुछ कर नही सका ,राजन के संघर्ष के परिणाम ये रहा की बहुत से गरीबो के कार्ड बन गया और भे बहुत कम कराया राजन ने ,लेकिन दस आदमी के धरने को फोटो के साथ छाप देने वाला मीडिया राजन के संघर्ष को कभी दो लाइन के ख़बर लायक नही समझा ऐसे में राजन बहुत निराश था की जब मीडिया उनकी बातो उनकी लडाई को न तो छपती है न दिखाती है तो भला चुनाव में उनकी बात जनता तक कैसे पहुचेगी ,
उन्होंने कई पत्रकारों से गुहार लगाई लेकिन उन्हें जल्दी समझ आ गया की उनकी गलती ये है की २६ जनवरी १५ ऑगस्ट, होली, दिवाली के मौके पे कभी कोई सुभकामना संदेश के विज्ञापन नही छपवाया और चले आए नेता बनने । राजन को बात देर से समझ में आयी के बिना छपे नेता नही बनता और साधारण चीज मुफ्त में नही छपती ऐसे में मनेजमेंट के इस स्टुडेंट को एक शुभचिंतक पत्रकार ने सुझाया की बेटा राजन यदि छापना चाहते हो तो आसाधारण बनो कुछ ऐसा करो की मीडिया की मज़बूरी बन जाओ । बात राजन को समझ में आ गयी और उसके बाद तो राजन रोज न सिर्फ़ अखबारों में छपने लगे बल्कि देश के तमाम राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल की हेड लाइन बन गए कुछ चैनल ने तो राजन को आधा घंटा के स्पेशल बुलेटिन में रखा ,हुआ यु की उस पत्रकार की सलाह से राजन ने अपने चुनाव के अंदाज ही बदल दिया राजन ने २०० रुपये में एक अर्थी खरीदी और अपने ४ साथियों को की मदद से अर्थी पे बैठ कर नामांकन करने पहुच गए ,योगी आदित्य नाथ भोजपुरी अभिनेता मनोज तिवारी के इंतजार में खड़ी मीडिया को लगा अरे इससे बड़ी ख़बर और क्या हो सकती है फिर क्या था दिल से ईमानदारी के काम के वावजूद कभी दो लाइन की ख़बर न बन्ने वाले राजन नौटंकी के बदौलत सभी आख्बरो में दुसरे दिन राजन के ही जलवे थे राजन को अब पता चल गया के ये मीडिया क्या चाहती है और राजन ने अपना चुनाव कार्यालय भी शमसान घाट पे खोल लिया और प्रतिदिन सुबह ४ कन्धा देने वाले मित्रो के मदद से अर्थी पे बैठकर जनसंपर्क उनकी दिनचर्या बन गयी ,स्थानीय अखबारों में ख़बर देख कर देश की तमाम बड़े प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के प्रतिनिधि गोरखपुर पहुचने लगे और देश के तमाम पत्र पत्रिकाए समेत विदेशी न्यूज़ एजेंसियों की लाइन लगने लगी राजन के शमसान वाले कार्यालय ,राजन से जब कोई पत्रकार अर्थी के कारन पूछता तो वे सधे और मंजे नेता की तरह जवाब देते की राजन अपनी जनता के लिये मरने को भी तैयार है और मेरे मरने के बाद किसी को मेरे लिए अर्थी जुटाने की तकलीफ भे न करने पड़े इसलिये मैंने अपना कार्यालय भी शमसान में खोला है और वही नेता जनता की सेवा कर सकता है जो जीवन के अन्तिम सत्य मौत के स्वागत के लिए तैयार रहे
1 टिप्पणी:
tareeka to khoob khoja,per jeetna jara muskil hai.
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