गुरुवार, 22 अक्टूबर 2009

विजय तो वामपंथियो की हुई है .

गोरखपुर में मालिको के शोषण के खिलाफ चल रहा मजदूरो का आन्दोलन गुरुवार की शाम प्रशासन द्वारा मजदूरो की शर्ते मान लेने के आश्वाशन के साथ समाप्त ho गया ।
प्रशासन द्वारा दिए गए आश्वासन को ये सीधे साधेमजदुर अपनी विजय मान रहे है ,साथ ही इनके आन्दोलन को हाइजैक करने वाले वामपंथी इसे अपने संघर्ष की विजय बताकर मजदूरो के जबरन नेता बननेकी कोशिश कर रहे है और मजदूरो के मन में ये बात बैठा दिया है की बिना लाल झंडे वालो के ये लडाई वो नही जीत पाते
लेकिन सबसे बड़ा सच तो ये है की मजदुर एक बार फ़िर बेचारा ही साबित हुआ है क्योकि शर्ते मनवाकर जीसे वो अपनी लडाई का अंत मान रहे , दरअसल वो इनके पराजय और पराभव की शुरुआत है ,दुर्भाग्य ये है की समय की खतरनाक आहट को मजदुर भाप नही पाए है । मजदूरों ने ये जानने की कोशिस भी नही की, कि अबतक अड़ियल रुख वाले ये मालिक और और प्रशासन के लोग अचानक एक साथ सभी शर्ते क्यो मान गए । अनुभव कि भाविस्यवानी मानकर मजदूर नोट कर ले शर्ते मानने का लालीपाप दिखाकर उनके आंदोलन को दबाने की ये एक कोशिश है आने वाले दीनो मे इन मजदूरो को पहले तो इनकी सारी सुभिधाये , जिनकी ये माँग कर्रहे थे दी जाएगी लिकिन फिर एक एक कर इनकी ना सिर्फ़ छटनी किया जाएगा बल्कि ऐसे हालत पैदा कर दिए जायेगे की मजदुर ख़ुद इस नौकरी को सलाम कर दे ,

इतिहास गवाह है इससे एक बड़ा आन्दोलन कालीन नगरी भदोही और मिर्जापुर के कालीन बुकर मजदूरो ने किया था , आन्दोलन से परेशां , मालिको ने पहले तो मजदूरो की बात मान ली , बाद में पुरे कालीन उद्योग में काम की परिभाषा ही बदल गई , कालीन कंपनियो के मालिको ने कालीन को कारखाने के बजाये ठेके पे देकर घरो में बनवाना शुरू कर दिया , आज वही लोग अपने घरो में कालीन बुनते है मगर पैसा सिर्फ़ उतना ही मिलता है जीतनी मीटर कालीन बनती है, जबकि कंपनी में यही मजदुर ८ घंटे काम कर बंधी तनख्वाह पाते थे, लेकिन इनके आन्दोलन ने इनका ही नुकसान किया । वही हालत अब गोरखपुर में बनती दिख रही है जहा राजनीती का बंजर झेल रहे वामपंथियो ने अपनी फसल बोने के लिये इन मजदूरो को गुमराह कर आन्दोलन का बिज बो दिया है जिसकी फसल पिछले एक महीने में काफी उग आयी है जिसे लाल सलाम करने वाले अब और खाद दे रहे है , आन्दोलन में उन्हें अभी जो शुरूआती विजय दिख रही है उसका मतलब मजदुर भले न जाने मगर वामपंथी अच्छी तरह जान रहे है की अब मजदूरो के मुख जो खून लग गया है उसका स्वाद मजदूरो को मिले न मिले उन्हें जरुर मिलेगा और मन्दिर एवं हाते में जकडे गोरखपुर की राजनीती में लाल झंडा भी जरुर लहराएगा ।
मजदुर एक बार फ़िर बेचारा साबित होगा , फ़िर कोई इन्हे मोहरा बनाएगा , समय का ये चक्र चलता रहेगा मजदुर इसी तरह पिस्ता रहेगा

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