बुधवार, 7 अक्टूबर 2009

लाश के सौदागर पत्रकार

गोरखपुर के महिला चिकित्सालय में मंगलवार को रात के अंधेरे में इन्सान के कई चहरे दिखाई पड़े ,इंसानों की इस भीड़ में खड़े ये सारे लोग अपने अपने नाम के साथ समाज का कोई न कोई सम्मानित पदजोड़े थे ,कोई पत्रकार था तो कोई डॉक्टर ,कोई पुलिसवाला था तो सामाजिक कार्यकर्त्ता । इस भीड़ में सभ्य से दिखने वाले ये ज्यादातर चेहरे दरअसल एक नकाब में थे लेकिन रात के अंधेरे में इनके चहरे से कुछ समय के लिये नकाब उतरा तो दिखा ये तो साक्षात् शैतान और नरपिशाच है ,कुकर्मी और अधर्मी है । इन शैतानो के चेहरे से नकाब उतरा एक महिला की लाश ने ,दरअसल संजू नामक उस महिला जिसके पेट में ७ माह का कन्या गर्भ था वो महिला अस्पताल में गर्भपात कराने आयी थी मगर अस्पताल में पहुचने से पहले ही अस्पताल के दलालों ने संजू और उसके पति को शिकंजे में ले लिया उसे बताया की ७ माह के बच्चे का गर्भपात नही होता ,संजू को मानो पेट में पल रही बेटी से पीछा छुडाना ही था ,दलालों ने १००० रुपये में सौदा तय किया और अस्पताल परिसर में ही एक कर्मचारी के आवास , जिसे दलालों ने छोटा अस्पताल का रूप दे रखा था में संजू का गर्भपात कर दिया ,लेकिन ७ माह का बच्चा होने के कारन संजू की हालत बिगड़ गयी उसे खून निकलने लगा जिससे गर्भपात करने वाली दाई और नर्से के माथे पे पसीना आ गया और मामला बिगड़ता देख रात के लगभग ९ बजे उन्होंने संजू को महिला अस्पताल में भरती करा दिया ,अधिक खून निकलने से संजू की हालत लगातार बिगति जा रही थी वो कराह रही थी लेकिन वहा पहुचे कुछ पत्रकारों की बाछे खिल गई ,पत्रकारों ने अस्पताल के कर्मचारियो से मामले को दबाने की मोलतोल शुरू कर दिया था , इसी बिच एक लोकल चैंनल का रिपोर्टर वहा पहुच कर अपना कैमरा निकला ही था की मोलभाव में लगे दुसरे पत्रकार ने उसे धमकी देते हुए कहा की अगर ये ख़बर चल गए तो समझ लेना , अचानक सूचना मिलाती है की संजू की मौत हो गई , थोडी ही देर में कई पत्रकार पहुच गए मगर आधी रात के समय पत्रकारिता का पवित्र पेशा रंडी (इस शब्द के लिये क्षमा करे ) के पेशे से बदतर दिखा जब पत्रकार दो खेमे में देखे , एक वे थे जो फटाफट अपने डेस्क पे ख़बर नोट करा और ब्रेक कर रहे थे तो कुछ ऐसे भी थे जो लाश का सौदा कर रहे थे ये लोग गर्भपात करने वालो को कानून बता कर भयभीत कर रहे थे ,जैसे उन्हे मालूम था की भय जितना बढेगा ख़बर न छपने की कीमत भी उतनी बढेगी ,इतना ही नही लाश के इन सौदागरों ने भय और बढ़ने के लिये मृतक के पति राजकुमार जो की रिक्शा चालक था से कहलवाकर रिक्शा संघ के लोगो को अस्पताल बुलकर हंगामा शुरू करा दिया , हंगामा सुनकर पुलिस भी आ गई कुछ पत्रकार अपनी ख़बर कर वापस लौट गए थे लेकिन पत्रकारिता को कोठे तक पहुचाने का कसम खाए कुछ पत्रकार अभी वही थे। अचानक हंगामा बंद हो गया ,पुलिसवाले वापस लौट गए संजू का पति जो अबतक अपनी पत्नी के मौत के लिये अस्पताल के कर्मचारियो को दोषी ठहरा रहा था ,अब इसे अपनी बदकिस्मती बताने लगा । इतना ही नही उसे आनन फानन वे अस्पताल से विदा कर दिया गया ,और अब वो कहा है किसी को नही मालूम ।

बताने की जरुरत नही है ऐसा क्यो हुआ होगा , रही सही शक सुबह के अख़बार ने यकीं में बदल दिया

प्रदेश के सबसे बड़े अख़बार का दावा करने वाले अख़बार में संजू नदारद थी

एक अन्य बड़े ब्रांड ने ख़बर को बड़े ही हलके और अनमने तरीके से लिख कर खानापूर्ति कर ली जबकि एक अख़बार ने संजू की मौत संदिग्ध अवस्था में बताया

सुबह १० बजे प्रेस क्लब पे जब पत्रकार इकठ्ठा हुए तो वह सिर्फ़ एक ही चर्चा हुई , कौन कितना पाया ,इस बात की चर्चा कोई नही कर रहा था की कन्या भ्रूण हत्या करने वाले ,सरकारी अस्पताल में अवैध गर्भपात कराने वाले ,एक महिला की जान लेने वालो के खिलाफ कुछ किया जाए ,क्योकि पत्रकारिता लाकतंत्र का चौथा स्तम्भ है , उसका फ़र्ज़ है लोकतंत्र की जनता की हिफाजत करना ,

संजू तो मर गई मगर उसकी मौत ने पत्रकारिता पे कई सवाल खड़े कर देये है जिनका जवाब हमें खोजना है ताकि हम इस पेशे की नई परिभाषा बना सके जिसमे सबकुछ हो मगर पवित्रता आदर्श त्याग जूनून निडरता जैसे शब्द न हो क्योकि जो पत्रकारिता मंगल के अँधेरी रात में देखने को मिली उसमे उपरोक्त शब्द अपना अपमान करा रहे है बेहतर तो यही हो की ये शब्द अपनी पहचान कही और बनाने की कोशिश करे , और पत्रकारिता को वो सबकुछ करने दे जो आज के ये लम्पट करना चाहते है । साथ ही अब पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा खम्भा नही बल्कि लोकतंत्र का स्वयम्भू गुंडा कहना चहिये ।

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