शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

कही यह पूर्वांचल को अशांत करने की साजिश तो नही है ?


जैसी आशंका थी वही हुआ ,कम्पनी के मालिको ने कम्पनी में ताला लगा दिया । ४०० मजदुर एक पल में बेरोजगार हो गए ,गोरखपुर में पिछले २ महीने से चल रहे मजदुर आन्दोलन का यह अंत न होता यदि वामपंथियो और और कुछ तथाकथित बुद्दिजिवियो ने इनके आन्दोलनं को हाइजैक न कर लिया होता ।
वामपंथियो के मजदुर आन्दोलन में कूद जाने के ही समय यह पता चल गया था की इनका उद्देश्य मजदूरो की लडाई लड़नी नही बल्कि पूर्वांचल में अपने राजनीती की फसल बोनी है , और वे अपनी फसल बो कर हट लिये और मारा गया मजदुर । दरअसल इन लाल झंडे वालो को इस इलाके में इनका झंडा उठाने वाला कोई नही मिल रहा था क्योकि आर्थिक पिछडेपन के वावजूद यहाँ के लोग अपनी रोजी रोटी का जुगाड़ कर ही लेते थे इलाके में दंगाईओ के लिये कोई जगह नही थी , सो सोची समझी राजनीती के तहत मजदूरो का भड़काया , आन्दोलन कराया और अब जो मजदुर तालाबंदी के कारन बेरोजगार हुए है उन्हें अब लाल झंडा पकड़कर यहाँ अशांति फैलायेगे । कुछ दिनों पहले यहाँ के सांसद योगी आदित्यनाथ ने इन आन्दोलन करने वालो को नक्सली और वामपंथी कहा था तो लोगो ने काफी विरोध किया था , उन विरोध करने वालो से हमारा पूछना है की ये नक्सली नही तो क्या है जिन्होंने सैकडो मजदूरो से राजगार छीन लिया और अभी न जाने कितने गरीब और नासमझ लोगो को gumrah karege ,अब तो उन को भी रहत मिल ही गयी होगी जो इनकी वकालत करते फ़िर रहे थे .

1 टिप्पणी:

satyendra ने कहा…

गुरू, झूठ मूठ का रायता मत फैलाइये। गोरखपुर को एक ही आदमी अशांत कर सकता है। रही बात वामपंथियों की, तो मजदूरों के हित में आवाज वे शिवसेना, विश्व हिंदू परिषद या कांग्रेस की तरह अपने स्वार्थ के लिए नहीं उठाते हैं। क्या मजदूरों को पागल कुत्ते ने काटा था, जो विरोध कर रहे थे? ये अलग बात है कि और संगठन सौदेबाजी कर समझौता कर लेते हैं, वामपंथी ऐसा नहीं करते।