बुधवार, 28 अक्टूबर 2009

गोरखपुर विश्वविद्यालय में गुंडा राज



गोरखपुर विश्वविद्यालय में इन दिनों गुंडों का राज चल रहा है ,ये गुंडे दो तरह के है ,पहले वो है जो स्टुडेंट नही है मगर जबरन हॉस्टल में कब्जा जमकर वहीसे अपराधिक गतिविधिया चला रहे है ,जिसका एक खुलासा रविवार को हुआ जब पता चला की गौतम बुद्ध हॉस्टल के कमरा नम्बर ३२ में कृषि विभाग के एक पूर्व अधिकारी की हत्या कर लाश वही गटर में डाल दिया था ,दुसरे गुंडे वो है जो पहले वाले गुंडों को भागने के नाम पे परिसर में घूम कर गुंडागर्दी कर रहे है , जबसे बुद्ध हॉस्टल का मामला सामने आया है तब से तो मनो इनके गुंडागर्दी का लाइसेंस मिल गया है ,ये लोग परिसर में स्टुडेंट के साथ जो कर रहे है उसे देखकर इन्हे गुंडा कहना कही से ग़लत नही है क्योकि यह अधिकार किसी को नही है की किसी की सार्वजनिक स्थान पर पिटाई किया जाए और कान पकड़कर उठक बैठक कराया जाए । मगर विश्वविद्यालय के कुछ लोग इन दिनों यही काम कर रहे है , हां ये बात जरुर है की असली गुंडों को छेड़ने की ताकत और हौसला इनमे नही है क्योकि अबतक असलं गुंडों के खिलाब कोई कार्यवाही हुई है , कभी नही सुने पड़ा ।

ऊपर के विजुअल को क्लिक करे और देखे कौसे चल रहा है गुंडा राज

शनिवार, 24 अक्टूबर 2009

कही यह पूर्वांचल को अशांत करने की साजिश तो नही है ?


जैसी आशंका थी वही हुआ ,कम्पनी के मालिको ने कम्पनी में ताला लगा दिया । ४०० मजदुर एक पल में बेरोजगार हो गए ,गोरखपुर में पिछले २ महीने से चल रहे मजदुर आन्दोलन का यह अंत न होता यदि वामपंथियो और और कुछ तथाकथित बुद्दिजिवियो ने इनके आन्दोलनं को हाइजैक न कर लिया होता ।
वामपंथियो के मजदुर आन्दोलन में कूद जाने के ही समय यह पता चल गया था की इनका उद्देश्य मजदूरो की लडाई लड़नी नही बल्कि पूर्वांचल में अपने राजनीती की फसल बोनी है , और वे अपनी फसल बो कर हट लिये और मारा गया मजदुर । दरअसल इन लाल झंडे वालो को इस इलाके में इनका झंडा उठाने वाला कोई नही मिल रहा था क्योकि आर्थिक पिछडेपन के वावजूद यहाँ के लोग अपनी रोजी रोटी का जुगाड़ कर ही लेते थे इलाके में दंगाईओ के लिये कोई जगह नही थी , सो सोची समझी राजनीती के तहत मजदूरो का भड़काया , आन्दोलन कराया और अब जो मजदुर तालाबंदी के कारन बेरोजगार हुए है उन्हें अब लाल झंडा पकड़कर यहाँ अशांति फैलायेगे । कुछ दिनों पहले यहाँ के सांसद योगी आदित्यनाथ ने इन आन्दोलन करने वालो को नक्सली और वामपंथी कहा था तो लोगो ने काफी विरोध किया था , उन विरोध करने वालो से हमारा पूछना है की ये नक्सली नही तो क्या है जिन्होंने सैकडो मजदूरो से राजगार छीन लिया और अभी न जाने कितने गरीब और नासमझ लोगो को gumrah karege ,अब तो उन को भी रहत मिल ही गयी होगी जो इनकी वकालत करते फ़िर रहे थे .

गुरुवार, 22 अक्टूबर 2009

विजय तो वामपंथियो की हुई है .

गोरखपुर में मालिको के शोषण के खिलाफ चल रहा मजदूरो का आन्दोलन गुरुवार की शाम प्रशासन द्वारा मजदूरो की शर्ते मान लेने के आश्वाशन के साथ समाप्त ho गया ।
प्रशासन द्वारा दिए गए आश्वासन को ये सीधे साधेमजदुर अपनी विजय मान रहे है ,साथ ही इनके आन्दोलन को हाइजैक करने वाले वामपंथी इसे अपने संघर्ष की विजय बताकर मजदूरो के जबरन नेता बननेकी कोशिश कर रहे है और मजदूरो के मन में ये बात बैठा दिया है की बिना लाल झंडे वालो के ये लडाई वो नही जीत पाते
लेकिन सबसे बड़ा सच तो ये है की मजदुर एक बार फ़िर बेचारा ही साबित हुआ है क्योकि शर्ते मनवाकर जीसे वो अपनी लडाई का अंत मान रहे , दरअसल वो इनके पराजय और पराभव की शुरुआत है ,दुर्भाग्य ये है की समय की खतरनाक आहट को मजदुर भाप नही पाए है । मजदूरों ने ये जानने की कोशिस भी नही की, कि अबतक अड़ियल रुख वाले ये मालिक और और प्रशासन के लोग अचानक एक साथ सभी शर्ते क्यो मान गए । अनुभव कि भाविस्यवानी मानकर मजदूर नोट कर ले शर्ते मानने का लालीपाप दिखाकर उनके आंदोलन को दबाने की ये एक कोशिश है आने वाले दीनो मे इन मजदूरो को पहले तो इनकी सारी सुभिधाये , जिनकी ये माँग कर्रहे थे दी जाएगी लिकिन फिर एक एक कर इनकी ना सिर्फ़ छटनी किया जाएगा बल्कि ऐसे हालत पैदा कर दिए जायेगे की मजदुर ख़ुद इस नौकरी को सलाम कर दे ,

इतिहास गवाह है इससे एक बड़ा आन्दोलन कालीन नगरी भदोही और मिर्जापुर के कालीन बुकर मजदूरो ने किया था , आन्दोलन से परेशां , मालिको ने पहले तो मजदूरो की बात मान ली , बाद में पुरे कालीन उद्योग में काम की परिभाषा ही बदल गई , कालीन कंपनियो के मालिको ने कालीन को कारखाने के बजाये ठेके पे देकर घरो में बनवाना शुरू कर दिया , आज वही लोग अपने घरो में कालीन बुनते है मगर पैसा सिर्फ़ उतना ही मिलता है जीतनी मीटर कालीन बनती है, जबकि कंपनी में यही मजदुर ८ घंटे काम कर बंधी तनख्वाह पाते थे, लेकिन इनके आन्दोलन ने इनका ही नुकसान किया । वही हालत अब गोरखपुर में बनती दिख रही है जहा राजनीती का बंजर झेल रहे वामपंथियो ने अपनी फसल बोने के लिये इन मजदूरो को गुमराह कर आन्दोलन का बिज बो दिया है जिसकी फसल पिछले एक महीने में काफी उग आयी है जिसे लाल सलाम करने वाले अब और खाद दे रहे है , आन्दोलन में उन्हें अभी जो शुरूआती विजय दिख रही है उसका मतलब मजदुर भले न जाने मगर वामपंथी अच्छी तरह जान रहे है की अब मजदूरो के मुख जो खून लग गया है उसका स्वाद मजदूरो को मिले न मिले उन्हें जरुर मिलेगा और मन्दिर एवं हाते में जकडे गोरखपुर की राजनीती में लाल झंडा भी जरुर लहराएगा ।
मजदुर एक बार फ़िर बेचारा साबित होगा , फ़िर कोई इन्हे मोहरा बनाएगा , समय का ये चक्र चलता रहेगा मजदुर इसी तरह पिस्ता रहेगा

गुरुवार, 15 अक्टूबर 2009

ये भी शौक है

मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009 को मेलबर्न में नेकेड ब्रंच के दौरान पोल डांस से लोगों का मनोरंजन करते कलाकार एंथनी क्लिव। ऑस्ट्रेलिया में मेलबर्न फ्रिंज फेस्टीवल के दौरान ऐसी पार्टी आयोजित की जाती है।नेकेड ब्रंच पार्टी की सोच पैदा करने वाली नताली बेक के मुताबिक उन्हें ऐसी पार्टी का विचार अप्रैल की गर्मियों के दौरान आया, जब उन्होंने सोचा कि बगैर कपड़ों की पार्टी का आइडिया काफी मस्ती भरा अनुभव हो सकता है। नेकेड ब्रंच में मनोरंजन करने के लिए ऑस्ट्रेलिया के कई कलाकार भी हिस्सा लेते हैं। खासतौर पर इसमें एडिनबर्ग कॉमेडी फेस्टीवल के हास्य कलाकार अपना हुनर पेश करते हैं।

मंगलवार, 13 अक्टूबर 2009

जाको राखे साईया......








बड़ी पुरानी कहावत है जाको राखे साईया मार सके न कोई ,लेकिन जो अपनी जान की परवाह न कर दुसरे की जान बचाने को अपनी जान जोखिम में डालने का हौसला रखता हो उसे भला मरने की हिमाकत कौन कर सकता है आख़िर ऊपर वाले को भी कही तो जवाब देना ही होगा । इस बात को साबित कर दिया उत्तर प्रदेश रोडवेज के बस चालक अजय यादव ने जिसने मंगलवार की रत गोरखपुर बलिया मार्ग पे सामने से आ रही ट्रक से भिडंत हो जाने से ट्रक के सामने लगा एक लोहे का राड uसके पेट में घुस कर पीछे से निकल गया लेकिन इस हालत में भी अजय ने हिम्मत से काम लिया और बस को बगल की खाई में गिरने से बचाकर ३ दर्जन यात्रियो की जान बचा ली । ट्रक का लोहा अजय के पेट में इस कदर घुसा था की उसे गैस क़तर से काट कर निकला गया और अजय को उसी हालत में गोरखपुर लाया गया जहा एक प्राइवेट अस्पताल में डॉक्टरो ने बड़ी मसक्कत से अजय के पेटसे लहे का राड निकला । फिलहाल अजय की हालत अभी गंभीर है और वो अभी जीवन और मौत के बिच संघर्ष कर रहा है , लेकिन जिस बहादुरी और हौसले का परिचय उसने दिया है वो वाकई न सिर्फ हैरान करने वाला बल्कि उसके सहस को सलाम करने वाला है ।
आप भी इश्वर से प्राथना करे की अजय की हालत जल्दी ठीक हो जाए .

रविवार, 11 अक्टूबर 2009

ऐसे ही मोक्ष देती रहो माँ


गंगा को मोक्षदायनी यु ही नही कहते ,हकीकत में माँ गंगा सदियों से हमें मोक्ष देती आई है .उनका तो पृथ्वी पे आगमन ही सागर पुत्रो को मोक्ष देने के लिये ही हुआ था । गंगोत्री से गंगा सागर तक के अविरल कल कल यात्रा में माँ गंगा हमें कई रूपों में मोक्ष देती है ,कही खेत के लिये पानी तो कही पीने के लिये, हर जगह माँ हमें तृप्त करती आ रही है ,बनारस के घाट हो या संगम का किनारा चाहे हरिद्वार का तट हर जगह माँ हमारे पाप धोती है इतना ही नही गंगा माँ अपने किनारे रहने वाले गाव कसबे शहर की आबादी को अपने माध्यम से रोजगार देकर भी मोक्ष दे रही है ,चाहे गाव में गंगा में मछली मरने वाला हो या पूजा पाठ कराने वाले पंडे ,लाश जलाने वाले डोम हो या नाविक ,माँ सभी को किसी न किसी रूप में मोक्ष दे रही है ,अब तो इधर कुछ वर्षो से माँ बड़े नेताओ अधिकारियो स्वयसेवी संस्थाओ के लोग और सामाजिक कार्यकर्ताओ को भी मोक्ष देने लगी है ,इस नए वर्ग को माँ १९८८ से तब मोक्ष देने लगी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने गंगा प्रदुषण परियोजना की शुरुआत की थी

इस परियोजना में अब तक अरबो खर्च हो गए लेकिन उसके बाद भी लगातार मैली होती जा रही गंगा माता ने कभी शिकायत नही की बल्कि इस परियोजना के पैसे से लोगो को मोक्ष देती रही ,न जाने कितने अधिकारी ,कर्मचारी ,सामाजिक कार्यकर्त्ता लगातार मोक्ष की ओर बढ़ रहे है इसकी गिनती नही है

,तुलसी घाट किनारे रहने वाले महंथ बीरभद्र जी को भी माँ ने खूब मोक्ष दिया ,आख़िर वो भी कितना करते है माँ के लिये हर साल ५ जून को सैकडो बच्चो को एक दुसरे का हाथ पकड़ा कर घाट पे खड़ा कर देते है ,बड़े बड़े सेमिनार करते है बिल क्लिंटन से मिलते है ,सो उन्हें थोड़ा ज्यादा मोक्ष मिलना चहिये हो सकता है मिल ही रहा हो ।

आजकल माँ, स्वामी अविमुक्तेश्वर नन्द को भी खूब मोक्ष दे रही है वो तो बनारस से लेकर संगम तक मोक्ष लेनें में लग गए है लगातार काम कर रहे है सो इन्हे भी मोक्ष मिलना चाहिए आख़िर क्यो न मिले जब बाबा रामदेव गंगा पे बोल सकते है तो घाट पे रहने वाले क्यो न ले ,

इस बिच बनारस में कुछ मोक्ष लेने वालो ने न जाने क्यो मोक्ष पाने का प्रयास ही बंद कर दिया ,उनमे से एक है रामशंकर जी पेशे से पत्रकार है गंगा किनारे रहते है कुछ साल पहले रक्षत गंगाम आन्दोलन शुरू किया लेकिन लगता है तब तक गंगा का सारा मोक्ष समाप्त हो चुका था सो रामशंकर जी वापस हो लिये ,नये मोक्ष खोजने वालो में एक ज्योतिष लक्ष्मण शास्त्री भी है जो कई सच्ची भविष्यवाणी करने का दावा करते है लेकिन ये कभी नही बतया की माँ कब तक प्रदुषण से मुक्त होगी इधर कुछ दिनों से माँ को प्रदुषण मुक्त कर मोक्ष पाने वालो ने नए उत्साह से काम शुरू कर दिया क्योकि केन्द्र सरकार ने भी गंगा के लिए कुछ कर बदले में मोक्ष पाने के प्रयास शुरू करते हुए माँ गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया है .इतना ही नही अभी कुछ दिनों पहले विश्व बैंक से माँ गंगा के सफाई के लिये ३ बिलियन डालर की सहायता मिली है ,निसंदेह इस बड़े धन से माँ गंगा का प्रदुषण समाप्त हो या न हो लेकिन इतना तय है की सदियों से हमें मोक्ष देने वाली माँ फिर एक काफी बड़े वर्ग को मोक्ष देने जा रही है ।

देती रहो माँ ऐसे ही मोक्ष देती रहो ।

बुधवार, 7 अक्टूबर 2009

लाश के सौदागर पत्रकार

गोरखपुर के महिला चिकित्सालय में मंगलवार को रात के अंधेरे में इन्सान के कई चहरे दिखाई पड़े ,इंसानों की इस भीड़ में खड़े ये सारे लोग अपने अपने नाम के साथ समाज का कोई न कोई सम्मानित पदजोड़े थे ,कोई पत्रकार था तो कोई डॉक्टर ,कोई पुलिसवाला था तो सामाजिक कार्यकर्त्ता । इस भीड़ में सभ्य से दिखने वाले ये ज्यादातर चेहरे दरअसल एक नकाब में थे लेकिन रात के अंधेरे में इनके चहरे से कुछ समय के लिये नकाब उतरा तो दिखा ये तो साक्षात् शैतान और नरपिशाच है ,कुकर्मी और अधर्मी है । इन शैतानो के चेहरे से नकाब उतरा एक महिला की लाश ने ,दरअसल संजू नामक उस महिला जिसके पेट में ७ माह का कन्या गर्भ था वो महिला अस्पताल में गर्भपात कराने आयी थी मगर अस्पताल में पहुचने से पहले ही अस्पताल के दलालों ने संजू और उसके पति को शिकंजे में ले लिया उसे बताया की ७ माह के बच्चे का गर्भपात नही होता ,संजू को मानो पेट में पल रही बेटी से पीछा छुडाना ही था ,दलालों ने १००० रुपये में सौदा तय किया और अस्पताल परिसर में ही एक कर्मचारी के आवास , जिसे दलालों ने छोटा अस्पताल का रूप दे रखा था में संजू का गर्भपात कर दिया ,लेकिन ७ माह का बच्चा होने के कारन संजू की हालत बिगड़ गयी उसे खून निकलने लगा जिससे गर्भपात करने वाली दाई और नर्से के माथे पे पसीना आ गया और मामला बिगड़ता देख रात के लगभग ९ बजे उन्होंने संजू को महिला अस्पताल में भरती करा दिया ,अधिक खून निकलने से संजू की हालत लगातार बिगति जा रही थी वो कराह रही थी लेकिन वहा पहुचे कुछ पत्रकारों की बाछे खिल गई ,पत्रकारों ने अस्पताल के कर्मचारियो से मामले को दबाने की मोलतोल शुरू कर दिया था , इसी बिच एक लोकल चैंनल का रिपोर्टर वहा पहुच कर अपना कैमरा निकला ही था की मोलभाव में लगे दुसरे पत्रकार ने उसे धमकी देते हुए कहा की अगर ये ख़बर चल गए तो समझ लेना , अचानक सूचना मिलाती है की संजू की मौत हो गई , थोडी ही देर में कई पत्रकार पहुच गए मगर आधी रात के समय पत्रकारिता का पवित्र पेशा रंडी (इस शब्द के लिये क्षमा करे ) के पेशे से बदतर दिखा जब पत्रकार दो खेमे में देखे , एक वे थे जो फटाफट अपने डेस्क पे ख़बर नोट करा और ब्रेक कर रहे थे तो कुछ ऐसे भी थे जो लाश का सौदा कर रहे थे ये लोग गर्भपात करने वालो को कानून बता कर भयभीत कर रहे थे ,जैसे उन्हे मालूम था की भय जितना बढेगा ख़बर न छपने की कीमत भी उतनी बढेगी ,इतना ही नही लाश के इन सौदागरों ने भय और बढ़ने के लिये मृतक के पति राजकुमार जो की रिक्शा चालक था से कहलवाकर रिक्शा संघ के लोगो को अस्पताल बुलकर हंगामा शुरू करा दिया , हंगामा सुनकर पुलिस भी आ गई कुछ पत्रकार अपनी ख़बर कर वापस लौट गए थे लेकिन पत्रकारिता को कोठे तक पहुचाने का कसम खाए कुछ पत्रकार अभी वही थे। अचानक हंगामा बंद हो गया ,पुलिसवाले वापस लौट गए संजू का पति जो अबतक अपनी पत्नी के मौत के लिये अस्पताल के कर्मचारियो को दोषी ठहरा रहा था ,अब इसे अपनी बदकिस्मती बताने लगा । इतना ही नही उसे आनन फानन वे अस्पताल से विदा कर दिया गया ,और अब वो कहा है किसी को नही मालूम ।

बताने की जरुरत नही है ऐसा क्यो हुआ होगा , रही सही शक सुबह के अख़बार ने यकीं में बदल दिया

प्रदेश के सबसे बड़े अख़बार का दावा करने वाले अख़बार में संजू नदारद थी

एक अन्य बड़े ब्रांड ने ख़बर को बड़े ही हलके और अनमने तरीके से लिख कर खानापूर्ति कर ली जबकि एक अख़बार ने संजू की मौत संदिग्ध अवस्था में बताया

सुबह १० बजे प्रेस क्लब पे जब पत्रकार इकठ्ठा हुए तो वह सिर्फ़ एक ही चर्चा हुई , कौन कितना पाया ,इस बात की चर्चा कोई नही कर रहा था की कन्या भ्रूण हत्या करने वाले ,सरकारी अस्पताल में अवैध गर्भपात कराने वाले ,एक महिला की जान लेने वालो के खिलाफ कुछ किया जाए ,क्योकि पत्रकारिता लाकतंत्र का चौथा स्तम्भ है , उसका फ़र्ज़ है लोकतंत्र की जनता की हिफाजत करना ,

संजू तो मर गई मगर उसकी मौत ने पत्रकारिता पे कई सवाल खड़े कर देये है जिनका जवाब हमें खोजना है ताकि हम इस पेशे की नई परिभाषा बना सके जिसमे सबकुछ हो मगर पवित्रता आदर्श त्याग जूनून निडरता जैसे शब्द न हो क्योकि जो पत्रकारिता मंगल के अँधेरी रात में देखने को मिली उसमे उपरोक्त शब्द अपना अपमान करा रहे है बेहतर तो यही हो की ये शब्द अपनी पहचान कही और बनाने की कोशिश करे , और पत्रकारिता को वो सबकुछ करने दे जो आज के ये लम्पट करना चाहते है । साथ ही अब पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा खम्भा नही बल्कि लोकतंत्र का स्वयम्भू गुंडा कहना चहिये ।

रविवार, 4 अक्टूबर 2009

फोर्ड फाउंडेशन इंटरनेशनलफेलोशिप प्रोग्राम 2010


The Ford Foundation International Fellowships Program (IFP) seeks to build a new generation of social justice leaders in India by offering access to quality higher education. IFP especially supports candidates from groups that have historically lacked access to higher education.
In the last eight years, IFP India has selected 280 Fellows for Masters and PhD degrees. Of these, 200 Fellows have already completed their studies. Over seventy five percent have returned to India to begin careers in the social sector creating value for their regions and communities. IFP India helps returned fellows (alumni) raise their capacities through knowledge, skills and networks to become effective leaders working to improve lives in their communities.
Applications for 2010 are now open. Applicants should :
� Be Indians currently residing and working in the states of Bihar, Chhattisgarh, Gujarat, Jammu & Kashmir, Jharkhand, Madhya Pradesh, Orissa, Rajasthan, Uttar Pradesh or Uttarakhand. They should have faced some socio-economic disadvantage in their access to quality education.
� Hold a Bachelor’s or a Master’s degree from a recognized Indian university with at least 55% marks.
� Have at least three years’ full-time work experience relevant to their proposed area of study. They should also have experience in leadership and community service or development related activities.
Forty candidates will be selected following an intensive search and selection process. The Pre Application and Final Application Forms will be reviewed and evaluated by panels of experts from academia, the social development sector and other related disciplines. Shortlisted candidates will be further screened through regional and national interviews.

The IFP India Program will assist selected fellows in university admission process, paying for travel, tuition fees, living costs and logistical arrangements related to their study programs. The Information Sheet and Pre-Application Form can be downloaded from http://www.ifpsa.org/ The deadline for pre-applications is 15 December 2009.

The Information sheet and Pre-Application form are enclosed. Please pass this on to eligible candidates and encourage them to apply. Thank you so much for your support.

We would also appreciate it if you could email us at ask@ifpsa.org the full addresses and contact details of 10 important persons (from NGO's, Academia & Media) in your state to whom we can also forward IFP materials for dissemination.