बौध धर्म की स्थापना करने वाले भगवान बुद्ध के बारे में शायद ही कोई हो, जो न जानता हो . मै तो बनारस का होने के कारन अक्सर सारनाथ जाता हूँ और उनके चरणों में शीश नवाता हूँ ,मैंने थोड़ा बहुत बौध दर्शन भी पढ़ा है जिससे मै प्रभावित भी हूँ मेरा मानना है कि शान्ति और अहिंसा का संदेश देने वाला बुद्ध का दर्शन अतुलनीय है और मानवता के नजरिये से मानव के रूप में महा मानव थे । लेकिन आज मेरे एक साथी ने मुझसे एक ऐसा सवाल पूछा कि मै जवाब नही दे सका और उसे नास्तिक ,कम्युनिस्ट जैसे उपाधियों नवाज दिया लेकिन उसने जाते जाते अपना सवाल दुहराते हुए बोला कि जिस भगवान बुद्ध को तुम पूजते हो वो तो एक भगोड़ा था जो जीवन कि समस्याओ इन्सान के कस्ट से घबराकर अपने दूध मुहे बच्चे और पत्नी को छोड़ कर सत्य ( gyan ) कि खोज में चला गया जबकि उस समय और आज का सबसे बड़ा सत्य यही है कि जो जनम लेता है उसे मरना पड़ता है फिर वो कौन सा ज्ञान प्राप्त करने गए थे और उस ज्ञान से क्या उन्होंने मौत और शारीरिक तकलीफों का विकल्प तलाश लिया । नही खोज पाए बुद्ध इसका विकल्प ,फिर क्या गलती थी उनके दुधमुहे और उनकी पत्नी की ?इसका जवाब कौन देगा क्या इसका जवाब उन भगोडे लोगो के पास है जो ख़ुद उसी रह पे चलकर ख़ुद को बुद्ध के अनुयाई कहते है । मित्र हो सकता है मै ग़लत हूँ तो सच क्या है क्या बुद्ध भगोडे नही है ,कम से कम गीता पढने वाला तो उन्हें भगोड़ा ही कहेगा क्योकि भगवतगीता के अनुसार ,यहाँ कोई अपना नही है ,जो आया है उसे जाना है किसी से मोह मत करो युद्ध करो ...................... फिर भगवान बुद्ध के दर्शन की प्रासंगिकता रह ही कहा जाती ,अगर आप अब भी सहमत नही है की बुद्ध भगोडे थे तो इतना तो मानना पड़ेगा की भगवत गीता की बात फालतू है ।
इस प्रश्न का जवाब मेरे पास तो नही है लेकिन मै परेशां जरुर हु क्योकि हिंदू होने के नाते भगवत गीता में मेरी पुरी आस्था है और गीता को मै जीवन का आधार मानता हूँ और बुद्ध को भी पूजता हूँ ,मेरा मन आज इस बात से व्यथित है और आपको मै अपनी व्यथा लिख रहा हूँ
कृपया आप ही बताये की सच क्या है।
5 टिप्पणियां:
आस्था अपनी जगह है और तर्क अपनी जगह है । अगर तर्क की कसौटी पर बुद्धिस्म को कसेंगे तो वो हिन्दू दर्शन के सामने नहीं टिकेगा । जिन बुराइयों की वजह से बुद्धिस्म का जन्म हुआ बाद में उन्ही सब ने मिल कर बुद्धिस्म को दबोच लिया । यही वजह थी कि बुद्धिस्म भारत में उतना नहीं विकसित हुआ जितना कि श्रीलंका, चीन, दक्षिण एशिया, जापान, वगैरह में फैला । शंकराचार्य के जन्म के बाद बुद्धिस्म और जैनिस्म में हªास हुआ । लेकिन फिर कहूंगा कि आस्था अपनी जगह है और तर्क अपनी जगह । आप बनारस से हैं, ये बड़े सौभाग्य की बात है । आपकी शंका का निवारण करने के लिए वहीं पर ढेरों विद्वान आपको मिल जायेंगे ।
गीता पड़ने वाले को बुद्ध और बुद्धू का फरक समझ में नहीं आया..क्या कहने ??
thik hai
thik hai
jeevan ke majhdhar me Mahatma Budh ko shayad Jeevan ke Satya Ka ahsas hua.Hum sabhi ko aisa lagta hai ki vo apni jimedari se bhage lekin pariwar ke mohe ko tyag kar unhone jo kaam samaj ke liye kiya vo sabhi nahi kar sakte.
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