शनिवार, 21 नवंबर 2009

कही इन्हे बेचा तो नही गया ?


वाराणसी के अखबारों में एक अच्छी ख़बर पढने को मिली । ख़बर थी जैतपुरा के पश्चात्यावर्ती महिला देखरेख संघठन में रह रही २२ संवासिनियो की जिला प्रशाशन के सहयोग से शादी करा दी गई , इस संगठन को दुसरे शब्दों में महिलाओ की जेल भी कहा जा सकता है जिसमे भूली बिसरी या घर से भाग आई और विवादों में पड़ी महिलाओ को रखा जाता है , इन महिलाओ को इनके परिजनों को संपर्क पर कानूनी प्रक्रिया के बाद वापस कर दिया जाता है । लेकिन बहुत सी लडकिया और महिलाये ऐसे भी है जो वर्षो पड़ी रहती है और उनका हाल जानने कोई नही आता , जिनके लिए जिला प्रसाशन ने वयवस्था कर राखी है की यदि कोई युवक इनसे विवाह करना चाहे तो क़ानूनी प्रक्रिया के तहत विवाह कर सकता है , इसी के तहत शुक्रवार को २२ लडकियों की शादी जिला प्रसाशन ने करा दी ।
२२ लडकिया जिस समय फेरे ले रही थी उस समय एक प्रश्न फ़िर से खड़ा हो गया था की क्या ये लडकिया सही हाथो में जा रही है या इन्हे कही अप्रैल २००६ की तरह पैसे लेकर बेचा तो नही जा रहा है , जी हां , ५ अप्रैल २००६ को एक न्यूज़ चैनल ने स्टिंग आपरेशन में दिखाया था की किस तरह संगठन की तत्कालीन अधीक्षिका गीता पाण्डेय ने महज पाच हजार में एक नपुंसक युवक से एक लड़की की शादी तय कर दी थी , स्टिंग में गीता पाण्डेय को पैसे लेते और ये कहते दिखाया गया था की , नपुंसक है तो कोई बात नही आप लोग दुल्हे का डाक्टर से सर्टिफिकेट बनवा करदे , हमें कागज से मतलब होता है ,
इस ख़बर के बाद गीता को तत्कालीन जिलाधिकारी राजीव अग्रवाल ने निलंबित कर दिया था , परन्तु जाँच के बाद जैसा हर बार होता है गुनाहगार निर्दोष साबित हो गया और गीता पाण्डेय बहाल भी हो गई , तब से कई बार इस चाहरदिवारी में शहनाई बज चुकी है लेकिन इस आवाज में २००६ की घटना की चीख दब जाती है ,और कभी किसी ने जानने की कोशिश नही की आख़िर शादी के बाद इन लडकियों कर क्या होता है ।

कोई टिप्पणी नहीं: