रविवार, 29 नवंबर 2009

अब पेड़ों को काटें नहीं, करें ट्रांसप्लांट.


अब सड़क के आड़े आने वाले पेड़ों को काटने की जरूरत नहीं है। ट्रासप्लाट तकनीक से उन्हें दूसरे स्थान पर सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है। राजस्थान में खेजड़ी के पेड़ों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले बिश्नोई समाज के जनक गुरु जंभेश्वर महाराज के नाम से विख्यात गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय [गुजविप्रौवि] ने इस तकनीक का इस्तेमाल कर पेड़ों को ट्रासप्लाट करने का करिश्मा कर दिखाया है।

इस तकनीक से विश्वविद्यालय के हार्टीकल्चर विभाग ने दो चरणों में खजूर के 38 पेड़ सफलता से ट्रासप्लाट किए हैं। इसके अलावा सड़क निर्माण के आड़े आ रहे करीब 25 अन्य पेड़ों को भी ट्रासप्लाट करने का कार्य जारी है।

दरअसल पर्यावरणवादी संत के नाम से जुड़े इस विश्वविद्यालय में आधुनिक पर्यावरण संरक्षण की शुरुआत गत अप्रैल माह में तब हुई, जब विश्वविद्यालय प्रशासन नेक [नेशनल एक्त्रिडीशन काउंसिल] की टीम के स्वागत की तैयारियों में जुटा हुआ था। विश्वविद्यालय को फिर से ए ग्रेड दिलाने के लिए हर क्षेत्र में सुधार किया गया लेकिन नए विश्वविद्यालय में पेड़ों से ज्यादा संख्या पौधों की थी। इसी दौरान विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीडीएस संधू ने एक खबर पढ़ी की चीन में पेड़ों को ही ट्रासप्लाट कर दिया जाता है। इस पर उन्होंने विश्वविद्यालय के कार्यकारी अभियंता एवं हार्टीकल्चर विभाग के अध्यक्ष अशोक अहलावत से बात की। इसके बाद अहलावत ने इस पर काम शुरू किया।

उन्होंने विश्वविद्यालय के जंगल में खड़े 25 से 30 वर्ष पुराने खजूर के 18 पेड़ों को ट्रासप्लाट करवाया। यह कार्य इस वर्ष 5 अप्रैल से शुरू हुआ और लगभग एक सप्ताह में पूरा कर लिया गया। पेड़ों का ट्रासप्लाट पूरी सफल रहता है या नहीं, यह स्पष्ट होने में करीब छह माह का समय लग जाता है। ट्रासप्लाट किए गए 18 पेड़ों में 15 हरे-भरे शान से खड़े हैं। इसके बाद सिंतबर माह में खजूर के 20 और पेड़ों को ट्रासप्लाट किया गया। यह कार्य 20 सितंबर से शुरू हुआ और करीब 10 दिनों में पूरा कर लिया गया। इस चरण की सफलता के बारे में पूरी तरह जानकारी तो मार्च, 2010 में चल पाएगी लेकिन अभी इनमें से सारे पेड़ सुरक्षित व अच्छी हालत में हैं। इसके बाद जब विश्वविद्यालय के गेट नंबर तीन से प्रशासनिक भवन तक सड़क चौड़ी करने का काम शुरू हुआ तो इस काम के आड़े भी 25 पेड़ आ गए। चूंकि पेड़ों को काटना उचित नहीं होता, इसलिए इन पेड़ों को भी अब ट्रासप्लाट किया जा रहा है।

यह काम अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में शुरू हुआ है और दिसंबर के अंत तक इसके पूरा हो जाने की उम्मीद है।

रविवार, 22 नवंबर 2009

पति पत्नी संवाद


नई शादी के बाद और शादी के एक वर्ष बाद ... पति पत्नी संवाद ...



पतिः देर किस बात की है।

पत्नीः क्या तुम चाहते हो मैं चली जाऊँ?

पतिः नहीं, ऐसा तो मैं सोच भी नहीं सकता।

पत्नीः क्या तुम मुझे प्यार करते हो?

पतिः अवश्य!

पत्नीः क्या तुमने मुझे कभी धोखा दिया है?

पतिः कभी नहीं! ये तो तुम अच्छी तरह से जानती हो, फिर क्यों पूछ रही हो?

पत्नीः अब क्या तुम मेरा मुख चूमोगे?

पतिः इसके लिये तो मैं तो कोई भी अवसर नहीं छोड़ने वाला।

पत्नीः क्या तुम मुझे मारोगे?

पतिः मुझे क्या पागल कुत्ते ने काटा है जो मैं ऐसा करूँगा?

पत्नीः क्या तुम मुझ पर विश्वास करते हो?

पतिः हाँ!

पत्नीः ओ डार्लिंग!!!

शादी एक वर्ष के बाद के लिये कृपया नीचे से ऊपर पढ़ें।

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शनिवार, 21 नवंबर 2009

कही इन्हे बेचा तो नही गया ?


वाराणसी के अखबारों में एक अच्छी ख़बर पढने को मिली । ख़बर थी जैतपुरा के पश्चात्यावर्ती महिला देखरेख संघठन में रह रही २२ संवासिनियो की जिला प्रशाशन के सहयोग से शादी करा दी गई , इस संगठन को दुसरे शब्दों में महिलाओ की जेल भी कहा जा सकता है जिसमे भूली बिसरी या घर से भाग आई और विवादों में पड़ी महिलाओ को रखा जाता है , इन महिलाओ को इनके परिजनों को संपर्क पर कानूनी प्रक्रिया के बाद वापस कर दिया जाता है । लेकिन बहुत सी लडकिया और महिलाये ऐसे भी है जो वर्षो पड़ी रहती है और उनका हाल जानने कोई नही आता , जिनके लिए जिला प्रसाशन ने वयवस्था कर राखी है की यदि कोई युवक इनसे विवाह करना चाहे तो क़ानूनी प्रक्रिया के तहत विवाह कर सकता है , इसी के तहत शुक्रवार को २२ लडकियों की शादी जिला प्रसाशन ने करा दी ।
२२ लडकिया जिस समय फेरे ले रही थी उस समय एक प्रश्न फ़िर से खड़ा हो गया था की क्या ये लडकिया सही हाथो में जा रही है या इन्हे कही अप्रैल २००६ की तरह पैसे लेकर बेचा तो नही जा रहा है , जी हां , ५ अप्रैल २००६ को एक न्यूज़ चैनल ने स्टिंग आपरेशन में दिखाया था की किस तरह संगठन की तत्कालीन अधीक्षिका गीता पाण्डेय ने महज पाच हजार में एक नपुंसक युवक से एक लड़की की शादी तय कर दी थी , स्टिंग में गीता पाण्डेय को पैसे लेते और ये कहते दिखाया गया था की , नपुंसक है तो कोई बात नही आप लोग दुल्हे का डाक्टर से सर्टिफिकेट बनवा करदे , हमें कागज से मतलब होता है ,
इस ख़बर के बाद गीता को तत्कालीन जिलाधिकारी राजीव अग्रवाल ने निलंबित कर दिया था , परन्तु जाँच के बाद जैसा हर बार होता है गुनाहगार निर्दोष साबित हो गया और गीता पाण्डेय बहाल भी हो गई , तब से कई बार इस चाहरदिवारी में शहनाई बज चुकी है लेकिन इस आवाज में २००६ की घटना की चीख दब जाती है ,और कभी किसी ने जानने की कोशिश नही की आख़िर शादी के बाद इन लडकियों कर क्या होता है ।

शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

ठाकरे कौन ? - अजय कुमार सिंह


शुक्रवार को मुंबई में आईबीएन-लोकमत के दफ्तर पर हमले के तुरंत बाद महारास्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चाह्वाद ने सख्त कार्यवाही का आश्वासन दिया तो लगा लंबे अरसे से नपुंसकों जैसा ब्यवहार कर रही महारास्ट्र सरकार की गैरत जाग गयी है। लेकिन थोड़ी ही देर में जाँच के लिए कमेटी बनाने की बात कहकर मुख्यमंत्री ने बता दिया की उनके पैजामे के नीचे कुछ नहीं है। बहरहाल काबिले तारीफ हैं लोकमत के वे पत्रकार जिन्होंने ठाकरे के सात गुंडों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया। देखें कि सामना के संपादक संजय राउत सिर्फ़ अपने दफ्तर में बैठकर ठाकरे के शत्रुओं को सबक सिखाने का बयान देते रहते हैं या फ़िर अपने पालतुओं की जमानत कराने थाने तक भी पहुँचते हैं। आईबीएन ७ - लोकमत को इस हमले से कोई नुकसान होने के बजाय फायदा ही हुआ है। मंदबुद्धि ठाकरे को भला क्या पता कि ऐसे हमलों से अब झोपड़पट्टी वाले भी नहीं घबराते। मीडिया वालों को तो उलटे फायदा ही होता है। इस हफ्ते की टैम रिपोर्ट आने दीजिये। पता चल जायगा कि शुक्रवार की शाम आईबीएन-लोकमत की टीआरपी कितनी बढ़ी।
कुछ दिन पहले ही राज ठाकरे के विधायकों ने विधानसभा में अबू आजमी से हाथापाई की थी। आजमी को भी इससे फायदा ही हुआ था। लेकिन सवाल उठता है कि महारास्ट्र की राजनीती में कभी गंभीरता से नहीं लिए गये चाचा-भतीजा अचानक पागल क्यों हो गये हैं। 'मातुश्री' नाम के एक मकान में जिन्द्गगी के आखिरी पड़ाव पर आराम से दिन गुजार रहे बाल ठाकरे को रिटायरमेंट के बाद फ़िर से काम पर लौटना पड़ा है। जाहिर है बाल ठाकरे को समझ आ गया है कि शिवसेना की दुकान बेटे उद्धव ठाकरे को सौंपना, उनकी गलती थी। नालायक उद्धव ने दुकान को बंदी के कगार पर पहुँचा दिया है। शिवसेना जैसी पुरानी दुकान से अच्छी तो राज ठाकरे की नई दुकान एम्एनएस चल पड़ी है। बेचारे बाल ठाकरे को बुढौती में दुकान पर बैठना पड़ रहा है। बहुत छोटी उमर से कम-धंधे में लग गये बाल ठाकरे को शायद पढ़ने का ज्यादा मौका नहीं मिला। उनका हिन्दी ज्ञान तो बिल्कुल ही सीमित है। इसीलिए हिन्दी की एक पुरानी कहावत 'पूत कपूत तो का धन संचय.........' उन्होंने नहीं। अन्यथा उद्धव के लिए अपना बुढ़ापा यों ख़राब नहीं करते।
कोई भी बता सकता है मराठी मानुस के नाम पर चल रही इस बकवास राजनीती में 'कुत्ता' प्रेमी राज ठाकरे (विधानसभा में अबू आजमी पर हमले वाले दिन राज ठाकरे की गोद में एक कुत्ता इठलाते देखा गया था) अपने चाचा बाल ठाकरे से काफी आगे निकल गये हैं। शुक्रवार को लोकमत के दफ्तर पर शिवसेना का ये हमला दरअसल 'बड़ा ठाकरे' कौन है यही साबित करने के लिए हुआ है। हाल में संपन्न हुए महारास्ट्र विधानसभा के चुनाव में करारी हार के बाद से ही बाल ठाकरे, राज ठाकरे को पछाड़ने लिए मचल रहे थे। दो दिन पहले ही बाल ठाकरे ने सचिन तेंदुलकर को मराठी से पहले ख़ुद को हिन्दुस्तानी कहने पर 'चाहेंट' लिया था। बाल ठाकरे ने जिस बात के लिए सचिन तेंदुलकर की निंदा की वो या तो जिन्ना मानसिकता का कोई ब्यक्ति ही कर सकता है या फ़िर कोई पागल।
ठाकरे के मुंह से निकलती ऐसी बकवास और उनके पालतुओं की ऐसी हरकत से साफ है महारास्ट्र की राजनीती में ठाकरे की कोई ओकात नहीं बची है। वोटर इनको पूछ नहीं रहा। चुनाव ये जीत नहीं पा रहे। अब ये तो सिर्फ़ सरकार की नपुंसकता है जो ये कभी सडकों पर ठेले-खोमचे-ऑटो वालों पर ताकत आजमाते हैं, कभी अमिताभ बच्चन के घर के सामने बोतलें फेंकते हैं, कभी रेलवे भर्ती परीछा में गये बच्चों को पीटते हैं, कभी विधानसभा में अबू आजमी से लड़ते हैं तो कभी लोकमत के दफ्तर पर हमला करते हैं।
ये भी साफ है कि ठाकरे पर लगाम कसने के लिए जनता और मीडिया द्वारा सरकार को दी जा रही 'शक्ति जागरण' ओसधियों का कोई असर क्यों नहीं पड़ रहा है। दरअसल सरकार और कांग्रेस को फिलहाल शिखंडी बने रहने में ही फायदा नज़र आ रहा है। 'जिन्हें' रोजगार के लिए सरकार के बाल नोचने चाहिए, बाल और राज ठाकरे ने उन्हें रोजगार दे रखा है। साथ ही मीडिया का पूरा ध्यान बेमतलब चाचा-भतीजा पर लगा है। सरकार को उसकी नाकामियों और जनता के असल सवालों पर घेरने वाला कोई है ही नहीं।
साभार -- छपाक ब्लागस्पाट डाट काम

A big shame









Dear All,


Please go through this and try to do your bit to save these very friendly animals. Sign the

protest list mentioned below and send on – this is serious…….

Denmark is a big shame
The sea is stained in red and in the mean while it’s not because of the climate effects of nature.


it's because of the cruelty that the (civilised) human beings kill hundreds of the famous and intelligent Calderon dolphins.
This happens every year in Feroe island in Denmark . In this slaughter the main participants are young teens.
WHY?
To show that they are adults and mature.... BULLLLsh
In this big celebration, nothing is missing for the fun. Everyone is participating in one way or the other, killing or looking at the cruelty “supporting like a spectator”

Is it necessary to mention that the dolphin calderon, like all the other species of dolphins, it’s near extinction and they get near men to play and interact. In a way of PURE friendship
They don’t die instantly; they are cut 1, 2 or 3 times with thick hoocks. And at that time the dolphins produce a grim extremely compatible with the cry of a new born child.

But he suffers and there’s no compassion till this sweet being slowly dies in its own blood
Its enough!
We will send this mail until this email arrives in any association defending the animals, we won’t only read. That would make us a cc omplices, viewers.

Take care of the world, it is your home!

गुरुवार, 12 नवंबर 2009

बिकनी परेड








बिकनी परेड: ऑस्ट्रेलिया में होने वाली ये सबसे बड़ी स्वीमवीयर परेड भी है जिसमें 200 से ज्यादा प्रतियोगी सड़कों पर कुछ इस अंदाज में उतरे।
बिकनी परेड में न सिर्फ सुंदर बालाएं आईं बल्कि पुरुषों ने भी अपने स्वीमसूट पहनकर परेड में शिरकत की।
गिनीज बुक में बिकनी: ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में हुई इस प्रतियोगिता में बिकनी पहने कई बालाओं ने हिस्सा लिया। इनका सिर्फ एक ही मकसद था कि किसी तरह गिनीज बुक में जगह बनाई जाए।

बुधवार, 11 नवंबर 2009

मै आतंकवादी बनने जा रहा हूँ .


ये तस्वीर है वाराणसी के राजेंद्र वर्मा की जो जल्दी ही आतंकवादी बन जायेगे , राजेंद्र आख़िर आतंकवादी क्यो बनना चाहते है ?
ख़ुद राजेंद्र के अनुसार उनके सामने हालत ऐसे बन गए है की अब कई दूसरा रास्ता पेट पालन का नही बचा है ,राजेंद्र कुछ साल पहले बनारसी साड़ी के बड़े व्यापारी थे उनके ४०० लूम चलते थे ,निचीबागमें दुकान थी जिसका किराया ही वे ६० हजार देते थे ,मगर बनारसी साडी के कारोबार में पिछले कुछ सालो से जो मंदी आई है उसने उन्हें इस कदर तोड़ डाला की अब सारे लूम बंद हो चुके है
दुकान वापस चली गई ,बाद में आशापुर में एक स्कूल खोला लेकिन वो भी नही चला , अब दुसरे बुनकरों से साडिया लेकर घूम घूम कर बेचते है कभी बिक गई तो भोजन नसीब होता है नही बिकी तो सर पे उधारका बोझ थोड़ा और बढ़ जाता है
कभी ४०० बुनकर परिवारों को रोजगार देने वाला राजेंद्र अब अपने बेटो को पढ़ने की फीस जुटाने को मोहताज हो गया है ,विगत दिनों वाराणसी के शिल्प मेले में वो घूमता नजर आया उसके हाथ में एक थैला था जिसमे कुछ अच्छी किस्म की बनारसी साडिया थी ,जिन्हें वह शिल्प मेले में बेचने लाया था लेकिन अफ़सोस की उसे कोई खरीदार नही मिला ,क्योकि उसकी साडिया असली सिल्क की थी, जिसके कारन महगी थी और नकली तथा सस्ती साड़ी की कद्रदान बन चुके बनारसी लोग उसके साड़ी को खरीदने की हिम्मत नही बना रहे थे ,हताश हो चले राजेन्द्र को घर में बुझे चूल्हे को जलने की चिंता खाई जा रही थी ,अचानक एक दुकान पे कुछ देर गुमसुम खड़ा रहने के बाद उसके मुह से निकला , अब मै आतंकवादी बन जाउगा क्योकि दूसरा रास्ता दिखाई नही पड़ता ,
वहा खड़े लोग राजेन्द्र की बात पे हस कर आगे बढ़ गए लेकिन उसके शब्दों में छिपे अर्थ को शायद ही कोई समझ पाया हो ,
राजेन्द्र के ये शब्द बता रहे है की किस कदर बनारस की खुशहाली का पर्याय रहा बनारसी साड़ी उद्योग अब अस्तित्व बचाने की जंग लड़ रहा है ,किस कदर नकली और चीन के सस्ते सिल्क से बने बनारसी साड़ी ने असली साड़ी को संग्रहालय की वास्तु बना दिया है ,किस कदर आधुनिक और रेडिमेड कपड़ो ने बनारसी कपड़े को लगभग समाप्त ही कर दिया है ,रही सही कसर सरकार ने बाल श्रम कानून की आड़ में पुरा कर दिया है जिसके कारन बुनकर अपने घर me भी बच्चो को बुनकारी नही सिखा सकते क्योकि उन्हें बच्चो से काम कराने का दोषी बनाकर या तो जेल भेज दिया जाता है या फिर इतना जुरमाना लगा दिया जाता है की उसे भरने में आधी जिंदगी गुजर जायेगी , ऐसे me भला कोई आतंकवादी बनने की सोचे तो बहुत आश्चर्य नही होना चाहिए ,राजेंद्र की बात और हालत देखकर मन ये सोचने को भी मजबूर करता है की जो लोग आज आतंकवादी बन चुके hai उनकी भी कहानी का नायक कोई राजेन्द्र ही तो नही होता ।

राजेंद्र वर्मा का पता -

७२ लोहिया नगर

आशापुर , वाराणसी

बुधवार, 4 नवंबर 2009

ये भी है बुलंद भारत की एक तस्वीर .


ज्यादा दिन नही बीते है जब देश भर के अखबारों और चैनलों में श्रीराम सेना द्वारा मंगलूर के एक पब में डांस कर रही लड़कियों की पिटाई की ख़बर प्रमुखता से देखने और पढने को मिल रहा था , वो लड़किया पब में, पेट पालने की की मज़बूरी में डांस कर रहा थी जिन्हें देखने बड़े घरो के बिगडे शहजादे जाते है लेकिन उन्हें किसी ने कुछ नही कहा । वो लड़किया ग़लत थी या सही , नही मालूम लेकिन कम से कम इतना तय है की वो नंगी होकर नही नाच रहा थी लेकिन शायद ये तस्वीरे देखकर आपको तुंरत यकीं नही होगा की की उत्तर भारत में कई स्थानों पे इस तरह के नंगे नाच बिगडैल शहजादों द्वारा आयोजित किया जा रहा है , और वो भी बाकायदा टिकट लगाकर , इस आयोजन से अच्छी कमाई हो रहा है , काफी लोग शामिल हो रहे, है देर रात तक तेज और अश्लील गाने बजते हैं , लेकिन श्रीरामसेना या अन्य कोई संस्कृति के ठेकेदार की नजर इसपे नही पड़ती जबकि बिहार के कुछ इलाको में

और हरियाणा चंडीगढ़ के आसपास के कुछ फार्महाउस इस तरह के आयोजन के लिये चर्चित है ।

यहाँ जो फोटो दिया गया है ये इसी तरह के एक आयोजन के एक एम्एम्एस से लिया गया है जिसमे आप saf देख सकते है इन लड़कियों के आसपास किस तरह कुछ बिगडैल युवक मस्ती में मदहोश हो रहे है , ये एम् एम् एस इन दिनों काफी चर्चे बटोर रहे है , लेकिन आश्चर्य इस बात का है की कानून के सरकारी या गैर सरकारी रखवालो की नजरे इन आयोजनों पे नही पड़ रहा है , और न ही पबो में लड़कियों को पीटने वाले सेनाओ का पुरुषार्थ जग रहा है ।

आख़िर क्यो ??????