इस तकनीक से विश्वविद्यालय के हार्टीकल्चर विभाग ने दो चरणों में खजूर के 38 पेड़ सफलता से ट्रासप्लाट किए हैं। इसके अलावा सड़क निर्माण के आड़े आ रहे करीब 25 अन्य पेड़ों को भी ट्रासप्लाट करने का कार्य जारी है।
दरअसल पर्यावरणवादी संत के नाम से जुड़े इस विश्वविद्यालय में आधुनिक पर्यावरण संरक्षण की शुरुआत गत अप्रैल माह में तब हुई, जब विश्वविद्यालय प्रशासन नेक [नेशनल एक्त्रिडीशन काउंसिल] की टीम के स्वागत की तैयारियों में जुटा हुआ था। विश्वविद्यालय को फिर से ए ग्रेड दिलाने के लिए हर क्षेत्र में सुधार किया गया लेकिन नए विश्वविद्यालय में पेड़ों से ज्यादा संख्या पौधों की थी। इसी दौरान विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीडीएस संधू ने एक खबर पढ़ी की चीन में पेड़ों को ही ट्रासप्लाट कर दिया जाता है। इस पर उन्होंने विश्वविद्यालय के कार्यकारी अभियंता एवं हार्टीकल्चर विभाग के अध्यक्ष अशोक अहलावत से बात की। इसके बाद अहलावत ने इस पर काम शुरू किया।
उन्होंने विश्वविद्यालय के जंगल में खड़े 25 से 30 वर्ष पुराने खजूर के 18 पेड़ों को ट्रासप्लाट करवाया। यह कार्य इस वर्ष 5 अप्रैल से शुरू हुआ और लगभग एक सप्ताह में पूरा कर लिया गया। पेड़ों का ट्रासप्लाट पूरी सफल रहता है या नहीं, यह स्पष्ट होने में करीब छह माह का समय लग जाता है। ट्रासप्लाट किए गए 18 पेड़ों में 15 हरे-भरे शान से खड़े हैं। इसके बाद सिंतबर माह में खजूर के 20 और पेड़ों को ट्रासप्लाट किया गया। यह कार्य 20 सितंबर से शुरू हुआ और करीब 10 दिनों में पूरा कर लिया गया। इस चरण की सफलता के बारे में पूरी तरह जानकारी तो मार्च, 2010 में चल पाएगी लेकिन अभी इनमें से सारे पेड़ सुरक्षित व अच्छी हालत में हैं। इसके बाद जब विश्वविद्यालय के गेट नंबर तीन से प्रशासनिक भवन तक सड़क चौड़ी करने का काम शुरू हुआ तो इस काम के आड़े भी 25 पेड़ आ गए। चूंकि पेड़ों को काटना उचित नहीं होता, इसलिए इन पेड़ों को भी अब ट्रासप्लाट किया जा रहा है।
यह काम अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में शुरू हुआ है और दिसंबर के अंत तक इसके पूरा हो जाने की उम्मीद है।