बाबा कबीरदास जी ने कहा था " ढाई अक्षर प्रेम का पढे सो पंडित होय ", लेकिन आज अपने आसपास नजर डालें तो पायेंगे की इन ढाई अक्षरो को कोई नहीं पढ रहा। वे ढाई अक्षर अब बडे रेलवे स्टेशनों के बाहर खडे स्टीम इंजनों की तरह हो गए हैं। जिन्हे अब उपयोग में नहीं लिया जाता, वे सिर्फ दर्शनीय हो गयें हैं। अंदर की पटरियों पर तो " 143 " की मेट्रो ट्रेनें घकाघक दौड रही हैं। 143 मतलब " आई लव यू "। इस भागदौड के समय में इतना घैर्य किसके पास है जो "आई लव यू" जैसा लंबा जुमला उछाले, इसलिए इसे " अंकगणित " में बदल दिया गया और यह हो गया " 143 "। इघर से 143 तो उघर से 143 बस हो गया प्रेम। आजकल की पीढी "प्रेम" जैसी घीर-गंभीर पोथी को शार्टकट में पढना चाहते हैं।
फिल्मी गीतकारों ने यू तो हमारी युवा पीढी को हजारों संदेश दिए हैं। इनमें " कम्बख्त इश्क " या " इश्क कमीना " जैसे नेगेटिव संदेश भी आए, जो प्रेमियों को प्रभावित नहीं कर सके। एक गीतकार ने तो इस पीढी की मौसम ज्ञान संबंघी भ्रांतियां दूर कीं और पांचवा मौसम " प्यार " का बताया।
एक जमाना वो था जब आदमी एक ही औरत से 50-60 सालों तक प्रेम किया करता था, अब हालात बदल गए हैं। जैसे एक आम आदमी इन दिनो एक साथ गरीबी, बेकारी, भूखमरी, जातिवाद, भ्रष्टाचार और पूंजीवाद से लड रहा है। उसी तरह हमारे प्रेमी-प्रेमिकाओं का 143 एक साथ कई लाइनों पर चल रहा है। एक-एक प्रेम दीवानी एक साथ 10-10 दीवानों से इश्क फरमा रही हैं, दीवानों का भी यही हाल हैं।
इनमें से कि सी भी प्रेमी को अपनी प्रेमिकाओं का ताजा स्कोर बताने में कोई संकोच नहीं होता है। अगर किसी लडकी के प्रेमियों की गिनती 32 तक पहुंच रही हैं तो वो 35 प्रेमियो वाली अपनी फ्रेंड से इंफीरियर महसूस करती है। प्रेमियों की ये पीढी साल में जितने कपडे नहीं बदलती उतने प्रेमी बदल रही हैं। एक प्रेम का एसएमएस 10 प्रेमिकाओं को एक साथ भेजा जाता है और रोटेशन में वही एसएमएस लौटकर प्रेमी के पास आ जाता है।
इन दिनों 143 की शुरूआत प्राइमरी के समापन और मिडिल की शुरूआत से हो रही हैं। पहले मिडिल , फिर हायर सेकंडरी, फिर कोचिंग क्लासेस, फिर कॉलेज की खुली हवा एक साथ कई प्रेमियों को ले बैठती है।
लडकियों को आजकल नौकरी का शौक भी खूब चढ रहा है। थर्ड क्लास ग्रेजुएट भी पांच-सात सौ की किसी प्राइवेट स्कूल में टीचर की नौकरी पा कर अपने प्रेमियो की सूची में इजाफा करती हैं। कई बालाएं तो विवाह की वेदी पर किसी कुंआरे की बलि लेने से पहले 10-20 लडको का शिकार कर चुकी होती हैं। ये सारे पंडित प्रेम की भाष् पढने के बजाए 143 के जरिये देह का भूगोल पढ रहे हैं। इनका प्रेम शरीरी है जो इस देह से शुरू होकर इसी देह पर खत्म हो जाता है। आज के दौर में प्रेम विवाह भी बहुतायत में होने लगें हैं, लेकिन मजे की बात यह है कि प्रेम विवाह के बाद भी इन्सान प्रेम की तलाश में जुटा हुआ है। आज अगर कबीर होते तो अपने ढाई अक्षरों को 143 में बदलते देख फिर कहते- दिया कबीरा रोय।