रविवार, 4 मार्च 2012
चुनाव परिणाम इस बार सबसे पहले यू.पी. लाईव न्युज पोर्टल पर
उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव के परिणामो को इस बार सबसे पहले और सबसे तेज यू.पी. लाईव न्युज पोर्टल पर देखा जायेगा। अब तक लोगो को चुनाव परिणाम के लिये तमाम न्युज टी.वी. चैनलो पर निर्भर होना पड़ता रहा है,और पल पल के बदलते परिणामो को जानने के लिये आपको घर मे टी.वी सेट के आगे चिपके रहने की मजबुरी होती रही है। मगर इस बार आप चलते फिरते कही भी हो अपने लैपटाप पाँमटाप या मोबाईल सेट पर यदी नेट कनेक्ट है तो यू.पी. लाईव न्युज पोर्टल www.uplivenews.in को लाँग इन कर देख सकते है। यू.पी. लाईव न्युज पोर्टल की टीम प्रदेश के हर मतगणना केन्द्र से हर पल की जानकारी पोर्टल पर सबसे पहले देने के लिये मौजुद रहेगे।
यू.पी. लाईव न्युज पोर्टल की काँन्टेन्ट एडिटर नेहा राय ने के अनुसार न्युज पोर्टल की दुनिया मे यह पहली बार होगा कि किसी चुनाव की मतगणना का परिणाम सबसे पहले लोगो को इण्टरनेट के माध्यम से मिलेगा। उन्होने बताया कि यू.पी. लाईव न्युज पोर्टल ने यह पहल खास कर उन लोगो के लिये कि है जो किन्ही कारणो से जो घरो मे बैठकर टी.वी.चैनल पर परिणाम नही देख पायेगे. .यानी आप अपने आँफिस मे हो या सफर मे या विदेश मे और जानना चाहते हो कि आपके विधानसभा मे कौन कितने पानी मे रहा तो सिर्फ लाँगिन करे www.uplivenews.in
बुधवार, 21 अप्रैल 2010
बुधवार, 10 फ़रवरी 2010
पैसों का नया खेल, छात्राएं बेच रही है अंडाणु
कॉलेज जाने वाली दिल्ली की छात्राएं और अकेली कामकाजी युवतियां त्वरित तरीके से धन कमाने के लिए अपने अंडाणुओं का सौदा कर रही हैं। ये छात्राएं और युवतियां अपने अंडाणु प्रजनन क्लीनिकों में बेचती हैं, जिनके बदले उन्हें अच्छी-खासी रकम मिल जाती है। प्रजनन क्लीनिक इन अंडाणुओं को नि:संतान जोड़ों को बेच देते हैं।
दिल्ली के प्रजनन विशेषज्ञों को कॉलेज जाने वाली छात्राओं और अकेली कामकाजी युवतियों की ओर से अंडाणुओं देने के लिए लगातार निवेदन मिलता रहता है। प्रत्येक लड़की के शरीर से 10 से 12 अंडाणु लिए जाते हैं और इसके बदले उन्हें 20,000 से 50,000 रुपये तक की राशि मिल जाती है।
ग्रेटर कैलाश स्थित फिनिक्स अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ शिवानी सचदेवा गौड़ ने बताया, ''यह एक नया चलन है। काफी संख्या में युवतियां अंडाणु देने यहां आती हैं। जनवरी के पहले हफ्ते में दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रतिष्ठित कॉलेज की चार छात्राओं ने अंडाणु दिए। विलासितापूर्ण जीवनयापन के लिए ये लड़कियां अपने अंडाणुओं का सौदा कर रही हैं।''
पश्चिमी दिल्ली के बी.एल. कपूर मेमोरियल अस्पताल की चिकित्सक इंदिरा गणेशन ने बताया कि 22 से 25 वर्ष की युवतियां अंडाणु देने के लिए आया करती हैं। इनमें ज्यादातर अकेली या फिर कामकाजी होती हैं। अंडाणु देने का मुख्य मकसद पैसा हासिल करना है। शिवानी बताती है कि अंडाणु देने वाली अधिकांश लड़कियों के माता-पिता को इस बात की जानकारी नहीं होती। शिवानी के मुताबिक फिनिक्स अस्पताल में दुनिया भर से प्रतिमाह 15 नि:संतान जोड़े अंडाणुओं की मांग करते हैं।
बकौल शिवानी, ''अधिकांश जोड़े विदेशी होते हैं और इसके लिए वे 60,000 से 100,000 रुपये तक खर्च करने के लिए तैयार होते हैं। हमें ब्रिटेन, अमेरिका और आस्ट्रेलिया से अंडाणुओं का निवेदन प्राप्त होता है। भारत से भी हमें कुछ निवेदन मिलते हैं।''
दिल्ली के प्रजनन विशेषज्ञों को कॉलेज जाने वाली छात्राओं और अकेली कामकाजी युवतियों की ओर से अंडाणुओं देने के लिए लगातार निवेदन मिलता रहता है। प्रत्येक लड़की के शरीर से 10 से 12 अंडाणु लिए जाते हैं और इसके बदले उन्हें 20,000 से 50,000 रुपये तक की राशि मिल जाती है।
ग्रेटर कैलाश स्थित फिनिक्स अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ शिवानी सचदेवा गौड़ ने बताया, ''यह एक नया चलन है। काफी संख्या में युवतियां अंडाणु देने यहां आती हैं। जनवरी के पहले हफ्ते में दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रतिष्ठित कॉलेज की चार छात्राओं ने अंडाणु दिए। विलासितापूर्ण जीवनयापन के लिए ये लड़कियां अपने अंडाणुओं का सौदा कर रही हैं।''
पश्चिमी दिल्ली के बी.एल. कपूर मेमोरियल अस्पताल की चिकित्सक इंदिरा गणेशन ने बताया कि 22 से 25 वर्ष की युवतियां अंडाणु देने के लिए आया करती हैं। इनमें ज्यादातर अकेली या फिर कामकाजी होती हैं। अंडाणु देने का मुख्य मकसद पैसा हासिल करना है। शिवानी बताती है कि अंडाणु देने वाली अधिकांश लड़कियों के माता-पिता को इस बात की जानकारी नहीं होती। शिवानी के मुताबिक फिनिक्स अस्पताल में दुनिया भर से प्रतिमाह 15 नि:संतान जोड़े अंडाणुओं की मांग करते हैं।
बकौल शिवानी, ''अधिकांश जोड़े विदेशी होते हैं और इसके लिए वे 60,000 से 100,000 रुपये तक खर्च करने के लिए तैयार होते हैं। हमें ब्रिटेन, अमेरिका और आस्ट्रेलिया से अंडाणुओं का निवेदन प्राप्त होता है। भारत से भी हमें कुछ निवेदन मिलते हैं।''
शुक्रवार, 29 जनवरी 2010
"प्रेम" के ढाई अक्षर बदल गये "143" में
बाबा कबीरदास जी ने कहा था " ढाई अक्षर प्रेम का पढे सो पंडित होय ", लेकिन आज अपने आसपास नजर डालें तो पायेंगे की इन ढाई अक्षरो को कोई नहीं पढ रहा। वे ढाई अक्षर अब बडे रेलवे स्टेशनों के बाहर खडे स्टीम इंजनों की तरह हो गए हैं। जिन्हे अब उपयोग में नहीं लिया जाता, वे सिर्फ दर्शनीय हो गयें हैं। अंदर की पटरियों पर तो " 143 " की मेट्रो ट्रेनें घकाघक दौड रही हैं। 143 मतलब " आई लव यू "। इस भागदौड के समय में इतना घैर्य किसके पास है जो "आई लव यू" जैसा लंबा जुमला उछाले, इसलिए इसे " अंकगणित " में बदल दिया गया और यह हो गया " 143 "। इघर से 143 तो उघर से 143 बस हो गया प्रेम। आजकल की पीढी "प्रेम" जैसी घीर-गंभीर पोथी को शार्टकट में पढना चाहते हैं।
फिल्मी गीतकारों ने यू तो हमारी युवा पीढी को हजारों संदेश दिए हैं। इनमें " कम्बख्त इश्क " या " इश्क कमीना " जैसे नेगेटिव संदेश भी आए, जो प्रेमियों को प्रभावित नहीं कर सके। एक गीतकार ने तो इस पीढी की मौसम ज्ञान संबंघी भ्रांतियां दूर कीं और पांचवा मौसम " प्यार " का बताया।
एक जमाना वो था जब आदमी एक ही औरत से 50-60 सालों तक प्रेम किया करता था, अब हालात बदल गए हैं। जैसे एक आम आदमी इन दिनो एक साथ गरीबी, बेकारी, भूखमरी, जातिवाद, भ्रष्टाचार और पूंजीवाद से लड रहा है। उसी तरह हमारे प्रेमी-प्रेमिकाओं का 143 एक साथ कई लाइनों पर चल रहा है। एक-एक प्रेम दीवानी एक साथ 10-10 दीवानों से इश्क फरमा रही हैं, दीवानों का भी यही हाल हैं।
इनमें से कि सी भी प्रेमी को अपनी प्रेमिकाओं का ताजा स्कोर बताने में कोई संकोच नहीं होता है। अगर किसी लडकी के प्रेमियों की गिनती 32 तक पहुंच रही हैं तो वो 35 प्रेमियो वाली अपनी फ्रेंड से इंफीरियर महसूस करती है। प्रेमियों की ये पीढी साल में जितने कपडे नहीं बदलती उतने प्रेमी बदल रही हैं। एक प्रेम का एसएमएस 10 प्रेमिकाओं को एक साथ भेजा जाता है और रोटेशन में वही एसएमएस लौटकर प्रेमी के पास आ जाता है।
इन दिनों 143 की शुरूआत प्राइमरी के समापन और मिडिल की शुरूआत से हो रही हैं। पहले मिडिल , फिर हायर सेकंडरी, फिर कोचिंग क्लासेस, फिर कॉलेज की खुली हवा एक साथ कई प्रेमियों को ले बैठती है।
लडकियों को आजकल नौकरी का शौक भी खूब चढ रहा है। थर्ड क्लास ग्रेजुएट भी पांच-सात सौ की किसी प्राइवेट स्कूल में टीचर की नौकरी पा कर अपने प्रेमियो की सूची में इजाफा करती हैं। कई बालाएं तो विवाह की वेदी पर किसी कुंआरे की बलि लेने से पहले 10-20 लडको का शिकार कर चुकी होती हैं। ये सारे पंडित प्रेम की भाष् पढने के बजाए 143 के जरिये देह का भूगोल पढ रहे हैं। इनका प्रेम शरीरी है जो इस देह से शुरू होकर इसी देह पर खत्म हो जाता है। आज के दौर में प्रेम विवाह भी बहुतायत में होने लगें हैं, लेकिन मजे की बात यह है कि प्रेम विवाह के बाद भी इन्सान प्रेम की तलाश में जुटा हुआ है। आज अगर कबीर होते तो अपने ढाई अक्षरों को 143 में बदलते देख फिर कहते- दिया कबीरा रोय।
फिल्मी गीतकारों ने यू तो हमारी युवा पीढी को हजारों संदेश दिए हैं। इनमें " कम्बख्त इश्क " या " इश्क कमीना " जैसे नेगेटिव संदेश भी आए, जो प्रेमियों को प्रभावित नहीं कर सके। एक गीतकार ने तो इस पीढी की मौसम ज्ञान संबंघी भ्रांतियां दूर कीं और पांचवा मौसम " प्यार " का बताया।
एक जमाना वो था जब आदमी एक ही औरत से 50-60 सालों तक प्रेम किया करता था, अब हालात बदल गए हैं। जैसे एक आम आदमी इन दिनो एक साथ गरीबी, बेकारी, भूखमरी, जातिवाद, भ्रष्टाचार और पूंजीवाद से लड रहा है। उसी तरह हमारे प्रेमी-प्रेमिकाओं का 143 एक साथ कई लाइनों पर चल रहा है। एक-एक प्रेम दीवानी एक साथ 10-10 दीवानों से इश्क फरमा रही हैं, दीवानों का भी यही हाल हैं।
इनमें से कि सी भी प्रेमी को अपनी प्रेमिकाओं का ताजा स्कोर बताने में कोई संकोच नहीं होता है। अगर किसी लडकी के प्रेमियों की गिनती 32 तक पहुंच रही हैं तो वो 35 प्रेमियो वाली अपनी फ्रेंड से इंफीरियर महसूस करती है। प्रेमियों की ये पीढी साल में जितने कपडे नहीं बदलती उतने प्रेमी बदल रही हैं। एक प्रेम का एसएमएस 10 प्रेमिकाओं को एक साथ भेजा जाता है और रोटेशन में वही एसएमएस लौटकर प्रेमी के पास आ जाता है।
इन दिनों 143 की शुरूआत प्राइमरी के समापन और मिडिल की शुरूआत से हो रही हैं। पहले मिडिल , फिर हायर सेकंडरी, फिर कोचिंग क्लासेस, फिर कॉलेज की खुली हवा एक साथ कई प्रेमियों को ले बैठती है।
लडकियों को आजकल नौकरी का शौक भी खूब चढ रहा है। थर्ड क्लास ग्रेजुएट भी पांच-सात सौ की किसी प्राइवेट स्कूल में टीचर की नौकरी पा कर अपने प्रेमियो की सूची में इजाफा करती हैं। कई बालाएं तो विवाह की वेदी पर किसी कुंआरे की बलि लेने से पहले 10-20 लडको का शिकार कर चुकी होती हैं। ये सारे पंडित प्रेम की भाष् पढने के बजाए 143 के जरिये देह का भूगोल पढ रहे हैं। इनका प्रेम शरीरी है जो इस देह से शुरू होकर इसी देह पर खत्म हो जाता है। आज के दौर में प्रेम विवाह भी बहुतायत में होने लगें हैं, लेकिन मजे की बात यह है कि प्रेम विवाह के बाद भी इन्सान प्रेम की तलाश में जुटा हुआ है। आज अगर कबीर होते तो अपने ढाई अक्षरों को 143 में बदलते देख फिर कहते- दिया कबीरा रोय।
शनिवार, 19 दिसंबर 2009
क्या राहुल नाटक करते है ?
अपनी माँ सूर्पनका सोनिया गाँधी की तरह उसका बेटा भी जनता को मुर्ख बना रहा है...
देखिये किस तरह ये झूठा आदमी अपने आप को आप आदमी की तरह दिखाकर जनता को मुर्ख बना रहा है...उसके हाथों में एक खाली प्लास्टिक का छोटा सा टब है...पैरों में रिबूक के जूतें हैं..जबकि उसके आगे चल रही एक मजदूर औरत नंगे पैर है और उसके हाथों में असली भोझा है...ये आदमी (राहुल) नशे की लत से ग्रसित है (क्योकि आखें कभी झूठ नहीं बोलती) एक बार इसे FBI Boston ने दृग्स रखने और गैरकानूनी ढंग से पैसा रखने के आरोप में गिरफ्तार भी कर लिया था. वो तो अटल बिहारी वाजपेई जी प्रधानमंत्री थे, जिनके ऑफिस ने तुरंत अमेरिका में संपर्क करके राहुल को छुडवाया.
अब ये आदमी कहता है की उसकी पार्टी गरीबों के साथ है..याद रखिये इसी पार्टी के कारण ही भारत में आज इतनी गरीबी है...ये नेहरु की सेकुलर निति का ही परिणाम है...
Today, billions of dollars from India are stashed in Swiss Bank — thanks largely to the Congress misrule. The Congress is responsible for keeping India in poverty, pro-poor indeed.
Besides, the Congress is fully into Muslim appeasement. The spineless Prime Minister that is Manmohan Singh has declared funds for terrorist families. Besides, he is also on record stating that the first right on the resources of the nation belongs to Muslims.
Voters, beware of the Congress-Manmohan-Sonia nexus. They will Talibanise India with their pussyfooting. Elect a pro-Hindu Government at the Center.
The Indian Media is hardselling Rahul while condemning Varun. Both are as differen as chalk and cheese. Choose patriotic Varun over these Islamic bootlickers.
*** On the education of Rahul Gandhi ***
Rahul Gandhi's post-school education is as follows:
St Stephens - one year, 1989-90
Harvard University - one year, 1990-91
The admission at St Stephens was not on the basis of merit, but on the sports quota. And the sports speciality - rifle shooting. So, one wonders the merit basis about admission to Harvard University.
His job in London? One says that he worked for a computer firm. Another says that he was an investment banker. Give the above education, one has to ask questions about competence in either. Of course, education alone is not a sufficient criteria, but it would be considered to be a necessary criteria. There are many who have not completed education, but have made a name for themselves in their chosen field. But this is something that cannot be said of Rahul Gandhi.
Do Rahul Gandhi's minders really think that they can get away with what they are trying to project? Another issue that arises is why does the media (Indian and foreign) are projecting Rahul Gandhi was what he is obviously not? And do they not have the necessary mechanism to investigate the education background? Either someone is lying to them or they are being told facts duly stretched. But then why is the media falling for it? Here are some reports on the subject.
Rahul is Mentally Slow /Retarded
People who interacted with Rahul Gandhi know this very well , he is mentally slow ! In contrast to Priyanka's assertiveness, one of her only two competitor's to the Gandhi mantle, her younger brother Rahul displays an awkwardness and the type of submissive behavior, which does not a leader make. In comparison to Priyanka's strong and colorful demeanor, Rahul looks like an insipid hanger on. Much of his lack of self-esteem can be attributed to the explosive secret that Rahul Gandhi is in fact mentally retarded. His mental handicap has been well hidden by the Gandhi family and the unconscionable press.
Rahul was in fact refused permission to some of Delhi's top institutions because of his mental handicap. A frustrated Gandhi family had then pulled strings at Harvard, where a quota of seats is always available for a price to the rich and famous. Since then Rahul was bundled off to the US and later UK much as his father Rajiv Gandhi had been packed off to Cambridge in the hopes that he would somehow muddle through an academic degree.
Rajiv of course never passed a single test at Cambridge and instead of bringing home a degree came back with an equally illiterate Catholic au pair of Italian extraction as his wife। Following in his father's footsteps, Rahul too has come back without a degree to his name, and a fair skinned South American Catholic girlfriend on his arm.
देखिये किस तरह ये झूठा आदमी अपने आप को आप आदमी की तरह दिखाकर जनता को मुर्ख बना रहा है...उसके हाथों में एक खाली प्लास्टिक का छोटा सा टब है...पैरों में रिबूक के जूतें हैं..जबकि उसके आगे चल रही एक मजदूर औरत नंगे पैर है और उसके हाथों में असली भोझा है...ये आदमी (राहुल) नशे की लत से ग्रसित है (क्योकि आखें कभी झूठ नहीं बोलती) एक बार इसे FBI Boston ने दृग्स रखने और गैरकानूनी ढंग से पैसा रखने के आरोप में गिरफ्तार भी कर लिया था. वो तो अटल बिहारी वाजपेई जी प्रधानमंत्री थे, जिनके ऑफिस ने तुरंत अमेरिका में संपर्क करके राहुल को छुडवाया.
अब ये आदमी कहता है की उसकी पार्टी गरीबों के साथ है..याद रखिये इसी पार्टी के कारण ही भारत में आज इतनी गरीबी है...ये नेहरु की सेकुलर निति का ही परिणाम है...
Today, billions of dollars from India are stashed in Swiss Bank — thanks largely to the Congress misrule. The Congress is responsible for keeping India in poverty, pro-poor indeed.
Besides, the Congress is fully into Muslim appeasement. The spineless Prime Minister that is Manmohan Singh has declared funds for terrorist families. Besides, he is also on record stating that the first right on the resources of the nation belongs to Muslims.
Voters, beware of the Congress-Manmohan-Sonia nexus. They will Talibanise India with their pussyfooting. Elect a pro-Hindu Government at the Center.
The Indian Media is hardselling Rahul while condemning Varun. Both are as differen as chalk and cheese. Choose patriotic Varun over these Islamic bootlickers.
*** On the education of Rahul Gandhi ***
Rahul Gandhi's post-school education is as follows:
St Stephens - one year, 1989-90
Harvard University - one year, 1990-91
The admission at St Stephens was not on the basis of merit, but on the sports quota. And the sports speciality - rifle shooting. So, one wonders the merit basis about admission to Harvard University.
His job in London? One says that he worked for a computer firm. Another says that he was an investment banker. Give the above education, one has to ask questions about competence in either. Of course, education alone is not a sufficient criteria, but it would be considered to be a necessary criteria. There are many who have not completed education, but have made a name for themselves in their chosen field. But this is something that cannot be said of Rahul Gandhi.
Do Rahul Gandhi's minders really think that they can get away with what they are trying to project? Another issue that arises is why does the media (Indian and foreign) are projecting Rahul Gandhi was what he is obviously not? And do they not have the necessary mechanism to investigate the education background? Either someone is lying to them or they are being told facts duly stretched. But then why is the media falling for it? Here are some reports on the subject.
Rahul is Mentally Slow /Retarded
People who interacted with Rahul Gandhi know this very well , he is mentally slow ! In contrast to Priyanka's assertiveness, one of her only two competitor's to the Gandhi mantle, her younger brother Rahul displays an awkwardness and the type of submissive behavior, which does not a leader make. In comparison to Priyanka's strong and colorful demeanor, Rahul looks like an insipid hanger on. Much of his lack of self-esteem can be attributed to the explosive secret that Rahul Gandhi is in fact mentally retarded. His mental handicap has been well hidden by the Gandhi family and the unconscionable press.
Rahul was in fact refused permission to some of Delhi's top institutions because of his mental handicap. A frustrated Gandhi family had then pulled strings at Harvard, where a quota of seats is always available for a price to the rich and famous. Since then Rahul was bundled off to the US and later UK much as his father Rajiv Gandhi had been packed off to Cambridge in the hopes that he would somehow muddle through an academic degree.
Rajiv of course never passed a single test at Cambridge and instead of bringing home a degree came back with an equally illiterate Catholic au pair of Italian extraction as his wife। Following in his father's footsteps, Rahul too has come back without a degree to his name, and a fair skinned South American Catholic girlfriend on his arm.
साभार --कट्टर हिन्दू ,फेसबुक
मंगलवार, 8 दिसंबर 2009
नक्सलवाद का सेक्सवाद
नक्सली संगठनों ने सामाजिक राजनीतिक बदलाव की मुहिम छोड़ कर महिलाओं का बर्बर उत्पीड़न शुरू कर दिया है उत्तर प्रदेश,बिहार झारखण्ड और छतीसगढ़ के सीमावर्ती आदिवासी इलाकों में जहाँ इंसान का वास्ता या तो भूख से पड़ता है या फिर बन्दूक से ,नक्सलियों ने यौन उत्पीडन की सारी हदें पार कर दी हैं माओवादी , भोली भाली आदिवासी लड़कियों को बरगलाकर पहले उनका यौन उत्पीडन कर रहे हैं फिर उन्हें जबरन हथियार उठाने को मजबूर किया जा रहा है वहीँ संगठन में शामिल युवतियों का ,पुरुष नक्सलियों द्वारा किये जा रहे अनवरत मानसिक और दैहिक शोषण बेहद खौफनाक परिस्थितियां पैदा कर रहा है वो चाहकर भी न तो इसके खिलाफ आवाज उठा पा रही है और न ही अपने घर वापस लौट पा रही हैं इस पूरे मामले का सर्वाधिक शर्मनाक पहलु ये है कि जो भी महिला कैडर इस उत्पीडन से आजिज आकर जैसे तैसे संगठन छोड़कर मुख्यधारा में वापस लौटने की कोशिश करती हैं ,उनके लिए पुलिस बेइन्तहा मुश्किलें पैदा कर दे रही है ।
शांति, बबिता, आरती, चंपा, संगीता...ये वो नाम हैं जिनसे चार -चार राज्यों की पुलिस भी घबराती थी। लेकिन आज पीडब्ल्यूजी एवं एमसीसी की ये सदस्याएं, पुरूष नक्सलियों के दिल दहलाने वाले उत्पीड़न का शिकार हैं। समूचे रेड कॉरिडोर में अनपढ़ आदिवासी महिलाओं को बिन ब्याही मां बनाया जा रहा है वहीँ मुख्य धारा में शामिल होने को लेकर उठी उनकी आवाज लाठियों से बर्बरतापूर्वक कुचल दी जा रही है।
आलम यह कि माओवादियों और पुलिस के बीच की चक्की में पिस रही महिला कैडर न संगठन छोड़ पा रही हैं और न ही अपने गांव वापस लौट पा रही हैं। जो महिलाएं सजा काट कर जेलों से अपने घर लौटी हैं उनका कभी नक्सली तो कभी पुलिस दोहन करती है।माओवादियों के जुल्मोसितम की शिकार सरिता कहती है, अब मरने के अलावा हमारे पास कोई और रास्ता नहीं।’
प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश -बिहा-झारखण्ड सब जोनल कोमेटी में मौजूदा समय में लगभग ७५० महिला नक्सली शामिल हैं और सबकी कहानी लगभग एक जैसी है , नक्सलियों की चहेती कैडर चंपा ने जब यौन उत्पीड़न से आजिज आकर साथ चलने से मना कर दिया तो नक्सलियों ने उस पर हमला बोल दिया।
खूब शौर्य दिखाया। माओ जिंदाबाद के नारे लगाए और चंपा को इतना पीटा कि वह लाश की तरह गिर पड़ी और बहादुर नक्सली उसे मरा समझ कर वहां से चले गए। । बबिता ने गिरफ्तारी के बाद एकजोनल कमांडर से पैदा हुई अपने नवजात बच्चे को जेल के शौचालय में ही मिटटी के घडे में बंद करके मार डाला पिछले एक वर्ष के दौरान रेड कॉरिडोर का मुख्यद्वार कहे जाने वालेइन राज्यों में संगठन में रहते हुए सैकडों की संख्या में महिला नक्सली बिनब्याही माँ बन गयी वहीँ तमाम जेलों में बंद महिला नक्सालियों के भी जेल में ही गर्भवती हो जाने की भीजानकारी मिली है , हालाँकि यह खौफनाक सच्चाई कभी जेल की दीवारों में तो कभी बीहडों में ही दम तोड़ देती है
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद की महौली निवासी चंपा [19 वर्ष] कुछ वर्ष पूर्व सहेलियों के उकसावे में नक्सलियों के साथ जंगलों में कूद गई। कुछ ही दिनों में वह एसएलआर चलाने में माहिर हो गई।एम .सी.सी में शामिल होने के तीन वर्ष बाद जब एक दिन पुलिस ने उसकी मां को 15 दिनों तक बंधक बना रखा तो उसे मजबूरन हाजिर होना पड़ा। फिर एक साल की जेल। छूट कर आई तो घर वालों ने पड़ोस के गांव में उसका ब्याह कर दिया।
यह शादी नक्सलियों को रास नहीं आई। उसका दो माह का बेटा गोद में था जब एक रात 150 नक्सलियों ने उसके घर हमला बोल दिया।नक्सली उसे जबरन घर से बाहर निकाल लाये और उसे साथ चलने को कहा। चंपा के इंकार करने पर गांव वालों के सामने ही उस परअनगिनत लाठियां बरस पड़ीं। चंपा बताती है मैं चीखती रही पर कोई बचाने नहीं आया ,लगभग दो घंटे तक उसे बर्बरतापूर्वक पीटने के बाद नक्सली उसे मरा समझ वापस चलेगए। चम्पा आज भी जिंदा है, लेकिन मुर्दे की तरह। डॉक्टर बताते हैं कि चंपा का गर्भाशय क्षतिग्रस्त हो गया है। अगर जल्दी ऑपरेशन नहीं किया गया तो उसकी जान कभी भी जासकती है। चंपा मजदूरी कर मुश्किल से अपना और अपने बच्चे का पेट पाल रही है, इलाज क्या कराए?घर वालों ने पहले ही बाहर कर दिया अब कोई न आगे ना पीछे ,कहीं से से कोई उम्मीद नहीं
18 वर्ष की सविता अपने आठ माह के बच्चे को गोद में लिए जिन्दगी की दुश्वारियां झेल रही है। माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर में पांच साल पहले शामिल सविता का प्यार एक नक्सली से हुआ। एरिया कमांडर ने दोनों की शादी करने का फरमान जारी कर दिया। ब्याह के कुछ ही दिन बीते थे कि अलग-अलग मुठभेड़ में दोनों पुलिस की गिरफ्त में आ गये। सविता को मिर्जापुर और अजय को बिहार के भभुआ जेल में बंद कर दिया।
पिछले साल जेल से छूट कर आई सविता दुधमुंहे बच्चे को लेकर ससुराल पहुंची तो ससुराल वालों ने उसे नक्सली बताकर अपनाने से इंकार कर दिया बहुत सारी कोशिशें करके उसने अपने पति से संपर्क किया तो उसने भी दो टूक जवाब दे दिया ,सविता कहाँ जाये उसे कुछ भी समझ में नहीं आता , अब पहाड़ जैसी अकेली जिन्दगी और पुलिस की रोज की धमकीसविता बताती है 'पुलिस जब नहीं तब हमसे नक्सलियों का सुराग मांगती है ,मैं भला कहाँ से बताऊँ कहाँ है वो सब ?अगर कुछ मालूम होता तो भी शायद नहीं बताती नक्सली मुझे और मेरे बच्चे दोनों को मार डालेंगे
बिहार सीमा के निकट तेलाड़ी की रहने वाली बबिता [18 वर्ष] ने कभी पुलिस की नाक में दम कर रखा था। ओवादी बेहद खुबसूरत बबिता से मुखबिरी के अलावा रंगदारी भी वसूल करते थे बताते हैं कि एक बार जब बबिता ने पार्टी छोड़ने की सोची नक्सली उसे जबरन उठा ले गए और फिर उसके साथ दुष्कर्म भी किया ,उसके बाद जैसे तैसे बबिता पकडी गयी और लगभग डेढ़ साल तक जेल में बंद रही।
अपनी गिरफ्तारी के दौरान इस अविवाहित महिला नक्सली ने जब पिछले वर्ष जेल में ही एक बच्चे को जन्म दिया तो समूचेप्रशासनिक तंत्र में हड़कम्प मच गया। बाद में पट चला कि उसके पेट में पल रहा बच्चा एक कुख्यात नक्सली सरगना कमलेश का था ,जिसे अपनाने से उसने इनकार कर दिया था
कमलेश वहीँ नक्सली है जो पिछले सप्ताह उत्तर प्रदेश के साथ मुठभेड़ में मारा गया था बबिता के साथ जेल में अपने कुछ दिन बिताने वाली समाजसेवी रोमा बताती हैं कि वो एकरात हम नहीं भूलते जब दर्द से बबिता ने अपने आंसुओं से अपनी प्रसव -पीडा को मात दे दी थी ,सबेरे जब हमने और हमारे साथ कि महिला कैदियों ने घडे में बंद मृत बचे को देखातो हम अवाक रह गए ,जैसे तैसे बात खुली ,बबिता ने कैसे बिना किसी कि मदद के वो बच्चा जना होगा ,जब हम ये सोचते हैं तो आज भी हमारी रूह काँप जाती है ,शायद माओवादियों द्वारा दी गयी यंत्रणा ने उसे अन्दर से मजबूत कर दिया था छत्तीसगढ़ के थाना प्रतापपुर की रहने वाली लीलावती पी ,डबल्यू ,जी की एक शानदार शार्प शूटर तो थी ही ,उसे आदिवासियों के करमा नृत्य में भी महारत हासिल थी ,मगर अफ़सोस उसकी आँखें एक गैर नक्सली से चार हुई ,उसका चोरी छिपे प्रेमी से मिलना पुरुष नक्सलियों को नहीं भाया और एक रात उन्होंने उसके प्रेमी विश्वम्भर की हत्या कर दीप्रेमी की हत्या के बाद संगठन छोड़कर दर दर भटक रही लीलावती बताती है कि 'पार्टी में महिलाओं स्थिति सबसे खराब होती है ,पुरुष नक्सली हमें सिर्फ सेक्स की वस्तु समझते हैंबिना कोई शिकवा शिकायत किये सब कुछ सहना और चुप रहना ही महिला नक्सलियों की नियति बन जाती है ,शादी करना तो पहले प्रतिबंधित कर दिया था ,लेकिन अब वोकहते हैं कि संगठन के लोगों से शादी की जा सकती है , जब कोई भी सदस्य किसी गैर नक्सली से ब्याह करना चाहता है या फिर उसके उसके प्यार में पड़ता है तो उसे अक्षम्य अपराध माना जाता हैं जिसकी सजा सिर्फ मौत होती है 'लीलावती बताती है इस स्थिति का फायदा उठाकर पुरुष नक्सली महिलाओं का अनवरत यौन शोषण करते हैं
कभीकभार की जाने वाली औपचारिक पूछताछ को छोड़ दिया जाए तो महिला नक्सलियों के मुख्यधारा में वापस लौटने पर उन्हें शासकीय या कानूनी सहायता न के बराबर ही मिलती है.अगर संगठन से उकता कर उन्होंने आत्मसमर्पण कर भी दिया तो भी पुलिस उसे एनकाउंटर में की गयी गिरफ्तारी दिखाकर तमगा हासिल करने में जुट जाती है ऐसे में इन महिलाओं का रिहा होना बेहद कठिन हो जाता है ज्यादातर मामलों में वकील की मदद लेने के लिए आरोपी महिला अपने परिवारवालों पर आश्रित होती है. चूंकि उनमें से अधिकतर इसका खर्चा नहीं उठा सकते इसलिए उनका केस सालों तक घिसटता रहता है.पहले नक्सलियों और फिर समाज की जिल्लत से परेशान महिला कैदी अक्सर अवसाद और दूसरी मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हो जाती हैं. सबसे बुरा तो ये होता है कि एक बार नक्सली होने का दाग लग जाए तो अलग हो जाने के बाद भी जिंदगी भर के लिए उस महिला का सामाजिक जीवन तबाह होकर रह जाता है.
नक्सलियों में पैदा हुई इस अपसंस्कृति के नतीजे भी सामने आ रहे हैं माओ के नाम पर व बंदूकों के दम पर समता पूंजीवाद के खात्मे और साम्यवाद की स्थापना का सपना संजोये नक्सली एड्स समेत तमाम यौन जनित रोगों के शिकार हो रहे हैं ,और महिला नक्सलियों में बाँट रहे हैं छत्तीसगढ़ स्थित अंबिकापुर के एक बड़े फिजीसियन ने नाम न छपने की शर्त पर बताया कि मार्च के महीने में ,मेरे क्लीनिक पर इलाज करने आये ३ नक्सलियों में एच आई वी रिपोर्ट पोजिटिव आई है उक्त चिकित्सक ने बताया कि नक्सली ,बन्दूक की नोक पर मुझे जंगल ले गए थे और मुझे बीमार नक्सलियों का इलाज करने को कहा गया
सूत्र बताते हैं कि विगत ५ वर्षों में नक्सली गुरिल्लाओं में यौन जनित रोग तेजी से बढे हैं इसकी एक बड़ी वजह नक्सालियों द्वारा किया जाने वाला व्यभिचार भी हैं हाल में ही छतीसगढ़ पुलिस के गिरफ्त में आई सोनू गौड ने बताया कि मैंने संगठन में रहते ही अपने एक पुरुष साथी दिलीप से शादी कर ली थी एक इनकाउन्टर में दिलीप मारा गया और उसके बाद मुझे पार्टी के पुरुष सदस्यों द्वारा जबरन शारीरिक सम्बन्ध बनाने को मजबूर किया जाता रहा सोनू बताती है कि 'वो बंदूकों की नोक पर हमसे यौन सम्बन्ध बनाते थे ,कई बार तो हमें पता ही नहीं होता था कि आज की रात हमें किस पुरुष नक्सली के सामने परोसा जाना है जानकारी ये भी मिली है कि अनवरत हो रहे इस यौन उत्पीडन से आजिज आकर तमाम महिला गुरिल्ला खुद को पुलिस के सुपुर्द कर दे रही हैं ,वहीँ अपनी पहचान छुपाकर भाग खड़ी हो रही हैं ,इन सबके बीच माओवाद का ये चेहरा और भी सुर्ख होता जा रहा है
शांति, बबिता, आरती, चंपा, संगीता...ये वो नाम हैं जिनसे चार -चार राज्यों की पुलिस भी घबराती थी। लेकिन आज पीडब्ल्यूजी एवं एमसीसी की ये सदस्याएं, पुरूष नक्सलियों के दिल दहलाने वाले उत्पीड़न का शिकार हैं। समूचे रेड कॉरिडोर में अनपढ़ आदिवासी महिलाओं को बिन ब्याही मां बनाया जा रहा है वहीँ मुख्य धारा में शामिल होने को लेकर उठी उनकी आवाज लाठियों से बर्बरतापूर्वक कुचल दी जा रही है।
आलम यह कि माओवादियों और पुलिस के बीच की चक्की में पिस रही महिला कैडर न संगठन छोड़ पा रही हैं और न ही अपने गांव वापस लौट पा रही हैं। जो महिलाएं सजा काट कर जेलों से अपने घर लौटी हैं उनका कभी नक्सली तो कभी पुलिस दोहन करती है।माओवादियों के जुल्मोसितम की शिकार सरिता कहती है, अब मरने के अलावा हमारे पास कोई और रास्ता नहीं।’
प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश -बिहा-झारखण्ड सब जोनल कोमेटी में मौजूदा समय में लगभग ७५० महिला नक्सली शामिल हैं और सबकी कहानी लगभग एक जैसी है , नक्सलियों की चहेती कैडर चंपा ने जब यौन उत्पीड़न से आजिज आकर साथ चलने से मना कर दिया तो नक्सलियों ने उस पर हमला बोल दिया।
खूब शौर्य दिखाया। माओ जिंदाबाद के नारे लगाए और चंपा को इतना पीटा कि वह लाश की तरह गिर पड़ी और बहादुर नक्सली उसे मरा समझ कर वहां से चले गए। । बबिता ने गिरफ्तारी के बाद एकजोनल कमांडर से पैदा हुई अपने नवजात बच्चे को जेल के शौचालय में ही मिटटी के घडे में बंद करके मार डाला पिछले एक वर्ष के दौरान रेड कॉरिडोर का मुख्यद्वार कहे जाने वालेइन राज्यों में संगठन में रहते हुए सैकडों की संख्या में महिला नक्सली बिनब्याही माँ बन गयी वहीँ तमाम जेलों में बंद महिला नक्सालियों के भी जेल में ही गर्भवती हो जाने की भीजानकारी मिली है , हालाँकि यह खौफनाक सच्चाई कभी जेल की दीवारों में तो कभी बीहडों में ही दम तोड़ देती है
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद की महौली निवासी चंपा [19 वर्ष] कुछ वर्ष पूर्व सहेलियों के उकसावे में नक्सलियों के साथ जंगलों में कूद गई। कुछ ही दिनों में वह एसएलआर चलाने में माहिर हो गई।एम .सी.सी में शामिल होने के तीन वर्ष बाद जब एक दिन पुलिस ने उसकी मां को 15 दिनों तक बंधक बना रखा तो उसे मजबूरन हाजिर होना पड़ा। फिर एक साल की जेल। छूट कर आई तो घर वालों ने पड़ोस के गांव में उसका ब्याह कर दिया।
यह शादी नक्सलियों को रास नहीं आई। उसका दो माह का बेटा गोद में था जब एक रात 150 नक्सलियों ने उसके घर हमला बोल दिया।नक्सली उसे जबरन घर से बाहर निकाल लाये और उसे साथ चलने को कहा। चंपा के इंकार करने पर गांव वालों के सामने ही उस परअनगिनत लाठियां बरस पड़ीं। चंपा बताती है मैं चीखती रही पर कोई बचाने नहीं आया ,लगभग दो घंटे तक उसे बर्बरतापूर्वक पीटने के बाद नक्सली उसे मरा समझ वापस चलेगए। चम्पा आज भी जिंदा है, लेकिन मुर्दे की तरह। डॉक्टर बताते हैं कि चंपा का गर्भाशय क्षतिग्रस्त हो गया है। अगर जल्दी ऑपरेशन नहीं किया गया तो उसकी जान कभी भी जासकती है। चंपा मजदूरी कर मुश्किल से अपना और अपने बच्चे का पेट पाल रही है, इलाज क्या कराए?घर वालों ने पहले ही बाहर कर दिया अब कोई न आगे ना पीछे ,कहीं से से कोई उम्मीद नहीं
18 वर्ष की सविता अपने आठ माह के बच्चे को गोद में लिए जिन्दगी की दुश्वारियां झेल रही है। माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर में पांच साल पहले शामिल सविता का प्यार एक नक्सली से हुआ। एरिया कमांडर ने दोनों की शादी करने का फरमान जारी कर दिया। ब्याह के कुछ ही दिन बीते थे कि अलग-अलग मुठभेड़ में दोनों पुलिस की गिरफ्त में आ गये। सविता को मिर्जापुर और अजय को बिहार के भभुआ जेल में बंद कर दिया।
पिछले साल जेल से छूट कर आई सविता दुधमुंहे बच्चे को लेकर ससुराल पहुंची तो ससुराल वालों ने उसे नक्सली बताकर अपनाने से इंकार कर दिया बहुत सारी कोशिशें करके उसने अपने पति से संपर्क किया तो उसने भी दो टूक जवाब दे दिया ,सविता कहाँ जाये उसे कुछ भी समझ में नहीं आता , अब पहाड़ जैसी अकेली जिन्दगी और पुलिस की रोज की धमकीसविता बताती है 'पुलिस जब नहीं तब हमसे नक्सलियों का सुराग मांगती है ,मैं भला कहाँ से बताऊँ कहाँ है वो सब ?अगर कुछ मालूम होता तो भी शायद नहीं बताती नक्सली मुझे और मेरे बच्चे दोनों को मार डालेंगे
बिहार सीमा के निकट तेलाड़ी की रहने वाली बबिता [18 वर्ष] ने कभी पुलिस की नाक में दम कर रखा था। ओवादी बेहद खुबसूरत बबिता से मुखबिरी के अलावा रंगदारी भी वसूल करते थे बताते हैं कि एक बार जब बबिता ने पार्टी छोड़ने की सोची नक्सली उसे जबरन उठा ले गए और फिर उसके साथ दुष्कर्म भी किया ,उसके बाद जैसे तैसे बबिता पकडी गयी और लगभग डेढ़ साल तक जेल में बंद रही।
अपनी गिरफ्तारी के दौरान इस अविवाहित महिला नक्सली ने जब पिछले वर्ष जेल में ही एक बच्चे को जन्म दिया तो समूचेप्रशासनिक तंत्र में हड़कम्प मच गया। बाद में पट चला कि उसके पेट में पल रहा बच्चा एक कुख्यात नक्सली सरगना कमलेश का था ,जिसे अपनाने से उसने इनकार कर दिया था
कमलेश वहीँ नक्सली है जो पिछले सप्ताह उत्तर प्रदेश के साथ मुठभेड़ में मारा गया था बबिता के साथ जेल में अपने कुछ दिन बिताने वाली समाजसेवी रोमा बताती हैं कि वो एकरात हम नहीं भूलते जब दर्द से बबिता ने अपने आंसुओं से अपनी प्रसव -पीडा को मात दे दी थी ,सबेरे जब हमने और हमारे साथ कि महिला कैदियों ने घडे में बंद मृत बचे को देखातो हम अवाक रह गए ,जैसे तैसे बात खुली ,बबिता ने कैसे बिना किसी कि मदद के वो बच्चा जना होगा ,जब हम ये सोचते हैं तो आज भी हमारी रूह काँप जाती है ,शायद माओवादियों द्वारा दी गयी यंत्रणा ने उसे अन्दर से मजबूत कर दिया था छत्तीसगढ़ के थाना प्रतापपुर की रहने वाली लीलावती पी ,डबल्यू ,जी की एक शानदार शार्प शूटर तो थी ही ,उसे आदिवासियों के करमा नृत्य में भी महारत हासिल थी ,मगर अफ़सोस उसकी आँखें एक गैर नक्सली से चार हुई ,उसका चोरी छिपे प्रेमी से मिलना पुरुष नक्सलियों को नहीं भाया और एक रात उन्होंने उसके प्रेमी विश्वम्भर की हत्या कर दीप्रेमी की हत्या के बाद संगठन छोड़कर दर दर भटक रही लीलावती बताती है कि 'पार्टी में महिलाओं स्थिति सबसे खराब होती है ,पुरुष नक्सली हमें सिर्फ सेक्स की वस्तु समझते हैंबिना कोई शिकवा शिकायत किये सब कुछ सहना और चुप रहना ही महिला नक्सलियों की नियति बन जाती है ,शादी करना तो पहले प्रतिबंधित कर दिया था ,लेकिन अब वोकहते हैं कि संगठन के लोगों से शादी की जा सकती है , जब कोई भी सदस्य किसी गैर नक्सली से ब्याह करना चाहता है या फिर उसके उसके प्यार में पड़ता है तो उसे अक्षम्य अपराध माना जाता हैं जिसकी सजा सिर्फ मौत होती है 'लीलावती बताती है इस स्थिति का फायदा उठाकर पुरुष नक्सली महिलाओं का अनवरत यौन शोषण करते हैं
कभीकभार की जाने वाली औपचारिक पूछताछ को छोड़ दिया जाए तो महिला नक्सलियों के मुख्यधारा में वापस लौटने पर उन्हें शासकीय या कानूनी सहायता न के बराबर ही मिलती है.अगर संगठन से उकता कर उन्होंने आत्मसमर्पण कर भी दिया तो भी पुलिस उसे एनकाउंटर में की गयी गिरफ्तारी दिखाकर तमगा हासिल करने में जुट जाती है ऐसे में इन महिलाओं का रिहा होना बेहद कठिन हो जाता है ज्यादातर मामलों में वकील की मदद लेने के लिए आरोपी महिला अपने परिवारवालों पर आश्रित होती है. चूंकि उनमें से अधिकतर इसका खर्चा नहीं उठा सकते इसलिए उनका केस सालों तक घिसटता रहता है.पहले नक्सलियों और फिर समाज की जिल्लत से परेशान महिला कैदी अक्सर अवसाद और दूसरी मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हो जाती हैं. सबसे बुरा तो ये होता है कि एक बार नक्सली होने का दाग लग जाए तो अलग हो जाने के बाद भी जिंदगी भर के लिए उस महिला का सामाजिक जीवन तबाह होकर रह जाता है.
नक्सलियों में पैदा हुई इस अपसंस्कृति के नतीजे भी सामने आ रहे हैं माओ के नाम पर व बंदूकों के दम पर समता पूंजीवाद के खात्मे और साम्यवाद की स्थापना का सपना संजोये नक्सली एड्स समेत तमाम यौन जनित रोगों के शिकार हो रहे हैं ,और महिला नक्सलियों में बाँट रहे हैं छत्तीसगढ़ स्थित अंबिकापुर के एक बड़े फिजीसियन ने नाम न छपने की शर्त पर बताया कि मार्च के महीने में ,मेरे क्लीनिक पर इलाज करने आये ३ नक्सलियों में एच आई वी रिपोर्ट पोजिटिव आई है उक्त चिकित्सक ने बताया कि नक्सली ,बन्दूक की नोक पर मुझे जंगल ले गए थे और मुझे बीमार नक्सलियों का इलाज करने को कहा गया
सूत्र बताते हैं कि विगत ५ वर्षों में नक्सली गुरिल्लाओं में यौन जनित रोग तेजी से बढे हैं इसकी एक बड़ी वजह नक्सालियों द्वारा किया जाने वाला व्यभिचार भी हैं हाल में ही छतीसगढ़ पुलिस के गिरफ्त में आई सोनू गौड ने बताया कि मैंने संगठन में रहते ही अपने एक पुरुष साथी दिलीप से शादी कर ली थी एक इनकाउन्टर में दिलीप मारा गया और उसके बाद मुझे पार्टी के पुरुष सदस्यों द्वारा जबरन शारीरिक सम्बन्ध बनाने को मजबूर किया जाता रहा सोनू बताती है कि 'वो बंदूकों की नोक पर हमसे यौन सम्बन्ध बनाते थे ,कई बार तो हमें पता ही नहीं होता था कि आज की रात हमें किस पुरुष नक्सली के सामने परोसा जाना है जानकारी ये भी मिली है कि अनवरत हो रहे इस यौन उत्पीडन से आजिज आकर तमाम महिला गुरिल्ला खुद को पुलिस के सुपुर्द कर दे रही हैं ,वहीँ अपनी पहचान छुपाकर भाग खड़ी हो रही हैं ,इन सबके बीच माओवाद का ये चेहरा और भी सुर्ख होता जा रहा है
बुधवार, 2 दिसंबर 2009
प्रदूषण से दम तोड़ रहा रिहंद.
प्रदूषण के अथाह ढेर पर बैठा रिहंद समूचे उत्तर भारत में अभूतपूर्व उर्जा संकट की वजह बन सकता है लगभग 15,000 मेगावाट के बिजलीघरों के लिए प्राणवायु कहे जाने वाले रिहंद बाँध की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि आने वाले दिनों में रिहंद के पानी पर निर्भर बिजलीघरों से उत्पादन ठप्प हो सकता है आज रिहंद बाँध यानि कि पंडित गोविन्द वल्लभपंत सागर जलाशय का स्तर 848.7फिट रिकॉर्ड किया गया जो पिछले वर्ष की तुलना में6.7 फिट कम और वास्तविक न्यूनतम जलस्तर से मात्र 18.7 फिट अधिक है
अगली बरसात तक निर्बाध उत्पादन के लिए न्यूनतम जलस्तर को बनाये रखने के लिए जरुरी है कि बाँध के जल को संरक्षित रखा जाए ताकि अनपरा,शक्तिनगर ,ओबरा,विन्ध्यनगर,बीजपुर और रेनुसागर समेत एन.टी.पी,सी और राज्य विद्युत् गृहों को पानी मिल सके ,लेकिन उत्तर प्रदेश में जारी गंभीर बिजली संकट और उससे जुडी जल विद्युत् इकाइयों को चलने की मज़बूरी ,रिहंद के जल को कितने दिनों तक सुरक्षित रख पायेगी कहना कठिन है गौरतलब है कि न्यूनतम जलस्तर के नीचे जाने पर बिजलीघरों की कूलिंग प्रणाली हांफने लगती है ,अवर्षण की निरंतर मार झेल रहे रिहंद की वजह से पिछले पांच वर्षों से ग्रीष्मकाल में ताप विद्युत् इकाइयों को चलाने में दिक्कतें आ रही थी ,लेकिन इस वर्ष का खतरा ज्यादा है
हैरानी ये होती है कि केंद्र और प्रदेश की हुकूमतें उर्जा समस्या और ख़ास तौर से रिहंद के के प्रति संवेदनशील नहीं हैं ,जबकि संकट की गंभीरता बढती जा रही है आज रिहंद की मौजूदा स्थिति प्रदूषण की वजह से है रिहंद बाँध अपना 120 साल की उम्र 60 साल में ही पूरा कर चुका है ,बाँध की तली में जमे कचड़े के अपार ढेर की वजह से ही उसके न्यूनतम जलस्तर को 820 से घटाकर 830 फिर करना पड़ा वहीँ उसकी जलग्रहण के अधिकतम स्तर को 882 से घटाकर 870 फिट कर दिया गया
रिहंद बाँध की निगरानी में लगी स्ट्रक्चर बीहैवियर मोनिटरिंग कमेटी समेत तमाम एजेंसियां मौजूदा स्थिति के लिए बाँध के मौजूदा प्रदूषण को ही जिम्मेदार मानती है अभी कुछ दिनों पूर्व जब रिहंद के जल को पीने से लगभग दो दर्जन लोगों की मौत हुई तो स्वास्थ्य विभाग ने जलाशय के जल को विषाक्त घोषित कर दिया जांच में पाया गया कि 1080 वर्गमील में फैला अमृतमय जल अब मानव और मवेशियों ,जलचर नभचर के लिए उपयोगी नहीं रह गया ,रिहंद बाँध के विषाक्त जल का भयंकर प्रभाव इस इलाके की पारिस्थितकी पर भी पड़ रहा है विषैले जल से पूरे इलाके का भूगर्भ जल भी विषाक्त होने का खतरा है
रिहंद सागर का पानी ओबरा बाँध की विशाल झील में जाता है ,यहाँ से यह पानी ओबरा बिजलीघर की राख, जले हुए तेल ,खदानों और क्रशरों का उत्सर्जन लेकर रेणुका और सोन नदी दोनों को विषैला बनता है ,इस प्रदूषित पानी ने रिहंद ओबरा की सुनहरी नीली काया को स्याह कर डाला है ,जमीन का पानी तो विषैला था ही पिछले कुछ वर्षों से तेज़ाब की वर्षा भी हो रही है इलेक्ट्रो -दी-फ्रांस के अन्वेषी दल ,केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ,वनवासी सेवा आश्रम ,विचार मंच तथा अन्य संस्थाओं द्वारा किये गए अध्ययन की रिपोर्ट कहती है कि उर्जा की कामधेनु रिहंद बाँध का पानी विषाक्त हो चुका है ,बिजलीघरों की शुद्धिकरण प्रणाली अविश्वश्नीय है ,राख बाँध विफल है जिन बिजलीघरों ने इस बाँध को दूषित किया वही अब इसके कोप का शिकार हो रहे हैं
रिहंद बाँध के सम्बंध में एक तथ्य ये है कि इसका आकार कटोरे कि तरह है ऐसे में इसके जलस्तर में बढ़ोत्तरी की अपेक्षा ,जलस्तर के घटने कीदर ज्यादा तेज होती है ,मौजूदा समय में बाँध से जल के वाष्पीकरण की दर लगभग .05 फीट प्रतिदिन है जबकि अप्रैल मई तक यह दर .01 फीट प्रतिदिन तक हो जाती है ,विशेषज्ञों का मानना है कि अगर तात्कालिक तौर पर बाँध के जलस्तर को विशेष निगरानी में नहीं रखा गया ,और ओबरा एवं रिहंद जल विद्युत् गृहों से उत्पादन को सीमित नहीं किया गया ,तो आने वाले दिन समूचे उत्तर भारत के साथ - साथ नेशनल ग्रिड के लिए अभूतपूर्व संकट की वजह बन सकते हैं
स्थिति की गंभीरता को स्वीकार करते हुए सिंचाई विभाग के अभियंता कहते हैं 'हम विवश हैं बाँध में जमे कचड़े की वजह से एक निश्चित लेवल तक ही ताप विद्युत् संयंत्रों को कुलिंग वाटर की सप्लाई दी जा सकती है ,ऊँचाई में स्थित विद्युतगृहों में तो अब चेतावनी बिंदु से पूर्व ही कचड़ा जाने लगता है ,हम प्रकृति और प्रदूषण के सामने कुछ नहीं कर सकते '
रिहंद में पानी का अर्थ है देश की बिजली ,भारत की सबसे सस्ती बिजली लेकिन ये भरता नहीं जब राजीव गाँधी प्रधानमंत्री थे तब शक्तिनगर में केंद्रीय उर्जा मंत्री बसंत साठे ने इस इलाके को 'नेहरु उर्जा मंडल 'के अंतर्गत संरक्षित करने का सुझाव दिया था लेकिन वक़्त बीता बात बीती ,अब केंद्र और राज्य सरकारें यहाँ सिर्फ बिजलीघरों का जमघट लगाने में जुटी हुई हैं ,इस पूरी अफरातफरी में रिहंद को अनदेखा किया जा रहा है जिसका नतीजा सामने हैं खतरा सिर्फ बिजलीघरों को ही नहीं है ,रिहंद के 400 किमी लम्बे जलागम क्षेत्र को भी है ,उत्तर भारत में अगर उर्जा समस्या को काबू में रखना है तो रिहंद को प्रदूषण मुक्त करने के साथ साथ केंद्र सरकार को तात्कालिक तौर पर 'हस्तक्षेप कर विशेष उर्जा प्राधिकरण का गठन करना चाहिए
बांधों के विशेषज्ञ अनिल सिंह कहते हैं शासन ने यदि रिहंद को प्राथमिकता नहीं दी तो आने वाले दिनों में न सिर्फ हमें ब्लैक आउट से जूझना होगा ,बल्कि मौजूदा संकट लगभग 20 हजार मेगावाट के उन बिजलीघरों के लिए भी तमाम चुनौतियाँ पैदा कर देगा जिनका निर्माण अभी रिहंद के तट पर प्रस्तावित है
अगली बरसात तक निर्बाध उत्पादन के लिए न्यूनतम जलस्तर को बनाये रखने के लिए जरुरी है कि बाँध के जल को संरक्षित रखा जाए ताकि अनपरा,शक्तिनगर ,ओबरा,विन्ध्यनगर,बीजपुर और रेनुसागर समेत एन.टी.पी,सी और राज्य विद्युत् गृहों को पानी मिल सके ,लेकिन उत्तर प्रदेश में जारी गंभीर बिजली संकट और उससे जुडी जल विद्युत् इकाइयों को चलने की मज़बूरी ,रिहंद के जल को कितने दिनों तक सुरक्षित रख पायेगी कहना कठिन है गौरतलब है कि न्यूनतम जलस्तर के नीचे जाने पर बिजलीघरों की कूलिंग प्रणाली हांफने लगती है ,अवर्षण की निरंतर मार झेल रहे रिहंद की वजह से पिछले पांच वर्षों से ग्रीष्मकाल में ताप विद्युत् इकाइयों को चलाने में दिक्कतें आ रही थी ,लेकिन इस वर्ष का खतरा ज्यादा है
हैरानी ये होती है कि केंद्र और प्रदेश की हुकूमतें उर्जा समस्या और ख़ास तौर से रिहंद के के प्रति संवेदनशील नहीं हैं ,जबकि संकट की गंभीरता बढती जा रही है आज रिहंद की मौजूदा स्थिति प्रदूषण की वजह से है रिहंद बाँध अपना 120 साल की उम्र 60 साल में ही पूरा कर चुका है ,बाँध की तली में जमे कचड़े के अपार ढेर की वजह से ही उसके न्यूनतम जलस्तर को 820 से घटाकर 830 फिर करना पड़ा वहीँ उसकी जलग्रहण के अधिकतम स्तर को 882 से घटाकर 870 फिट कर दिया गया
रिहंद बाँध की निगरानी में लगी स्ट्रक्चर बीहैवियर मोनिटरिंग कमेटी समेत तमाम एजेंसियां मौजूदा स्थिति के लिए बाँध के मौजूदा प्रदूषण को ही जिम्मेदार मानती है अभी कुछ दिनों पूर्व जब रिहंद के जल को पीने से लगभग दो दर्जन लोगों की मौत हुई तो स्वास्थ्य विभाग ने जलाशय के जल को विषाक्त घोषित कर दिया जांच में पाया गया कि 1080 वर्गमील में फैला अमृतमय जल अब मानव और मवेशियों ,जलचर नभचर के लिए उपयोगी नहीं रह गया ,रिहंद बाँध के विषाक्त जल का भयंकर प्रभाव इस इलाके की पारिस्थितकी पर भी पड़ रहा है विषैले जल से पूरे इलाके का भूगर्भ जल भी विषाक्त होने का खतरा है
रिहंद सागर का पानी ओबरा बाँध की विशाल झील में जाता है ,यहाँ से यह पानी ओबरा बिजलीघर की राख, जले हुए तेल ,खदानों और क्रशरों का उत्सर्जन लेकर रेणुका और सोन नदी दोनों को विषैला बनता है ,इस प्रदूषित पानी ने रिहंद ओबरा की सुनहरी नीली काया को स्याह कर डाला है ,जमीन का पानी तो विषैला था ही पिछले कुछ वर्षों से तेज़ाब की वर्षा भी हो रही है इलेक्ट्रो -दी-फ्रांस के अन्वेषी दल ,केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ,वनवासी सेवा आश्रम ,विचार मंच तथा अन्य संस्थाओं द्वारा किये गए अध्ययन की रिपोर्ट कहती है कि उर्जा की कामधेनु रिहंद बाँध का पानी विषाक्त हो चुका है ,बिजलीघरों की शुद्धिकरण प्रणाली अविश्वश्नीय है ,राख बाँध विफल है जिन बिजलीघरों ने इस बाँध को दूषित किया वही अब इसके कोप का शिकार हो रहे हैं
रिहंद बाँध के सम्बंध में एक तथ्य ये है कि इसका आकार कटोरे कि तरह है ऐसे में इसके जलस्तर में बढ़ोत्तरी की अपेक्षा ,जलस्तर के घटने कीदर ज्यादा तेज होती है ,मौजूदा समय में बाँध से जल के वाष्पीकरण की दर लगभग .05 फीट प्रतिदिन है जबकि अप्रैल मई तक यह दर .01 फीट प्रतिदिन तक हो जाती है ,विशेषज्ञों का मानना है कि अगर तात्कालिक तौर पर बाँध के जलस्तर को विशेष निगरानी में नहीं रखा गया ,और ओबरा एवं रिहंद जल विद्युत् गृहों से उत्पादन को सीमित नहीं किया गया ,तो आने वाले दिन समूचे उत्तर भारत के साथ - साथ नेशनल ग्रिड के लिए अभूतपूर्व संकट की वजह बन सकते हैं
स्थिति की गंभीरता को स्वीकार करते हुए सिंचाई विभाग के अभियंता कहते हैं 'हम विवश हैं बाँध में जमे कचड़े की वजह से एक निश्चित लेवल तक ही ताप विद्युत् संयंत्रों को कुलिंग वाटर की सप्लाई दी जा सकती है ,ऊँचाई में स्थित विद्युतगृहों में तो अब चेतावनी बिंदु से पूर्व ही कचड़ा जाने लगता है ,हम प्रकृति और प्रदूषण के सामने कुछ नहीं कर सकते '
रिहंद में पानी का अर्थ है देश की बिजली ,भारत की सबसे सस्ती बिजली लेकिन ये भरता नहीं जब राजीव गाँधी प्रधानमंत्री थे तब शक्तिनगर में केंद्रीय उर्जा मंत्री बसंत साठे ने इस इलाके को 'नेहरु उर्जा मंडल 'के अंतर्गत संरक्षित करने का सुझाव दिया था लेकिन वक़्त बीता बात बीती ,अब केंद्र और राज्य सरकारें यहाँ सिर्फ बिजलीघरों का जमघट लगाने में जुटी हुई हैं ,इस पूरी अफरातफरी में रिहंद को अनदेखा किया जा रहा है जिसका नतीजा सामने हैं खतरा सिर्फ बिजलीघरों को ही नहीं है ,रिहंद के 400 किमी लम्बे जलागम क्षेत्र को भी है ,उत्तर भारत में अगर उर्जा समस्या को काबू में रखना है तो रिहंद को प्रदूषण मुक्त करने के साथ साथ केंद्र सरकार को तात्कालिक तौर पर 'हस्तक्षेप कर विशेष उर्जा प्राधिकरण का गठन करना चाहिए
बांधों के विशेषज्ञ अनिल सिंह कहते हैं शासन ने यदि रिहंद को प्राथमिकता नहीं दी तो आने वाले दिनों में न सिर्फ हमें ब्लैक आउट से जूझना होगा ,बल्कि मौजूदा संकट लगभग 20 हजार मेगावाट के उन बिजलीघरों के लिए भी तमाम चुनौतियाँ पैदा कर देगा जिनका निर्माण अभी रिहंद के तट पर प्रस्तावित है
प्रभात ख़बर से साभार ।
रविवार, 29 नवंबर 2009
अब पेड़ों को काटें नहीं, करें ट्रांसप्लांट.
अब सड़क के आड़े आने वाले पेड़ों को काटने की जरूरत नहीं है। ट्रासप्लाट तकनीक से उन्हें दूसरे स्थान पर सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है। राजस्थान में खेजड़ी के पेड़ों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले बिश्नोई समाज के जनक गुरु जंभेश्वर महाराज के नाम से विख्यात गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय [गुजविप्रौवि] ने इस तकनीक का इस्तेमाल कर पेड़ों को ट्रासप्लाट करने का करिश्मा कर दिखाया है।
इस तकनीक से विश्वविद्यालय के हार्टीकल्चर विभाग ने दो चरणों में खजूर के 38 पेड़ सफलता से ट्रासप्लाट किए हैं। इसके अलावा सड़क निर्माण के आड़े आ रहे करीब 25 अन्य पेड़ों को भी ट्रासप्लाट करने का कार्य जारी है।
दरअसल पर्यावरणवादी संत के नाम से जुड़े इस विश्वविद्यालय में आधुनिक पर्यावरण संरक्षण की शुरुआत गत अप्रैल माह में तब हुई, जब विश्वविद्यालय प्रशासन नेक [नेशनल एक्त्रिडीशन काउंसिल] की टीम के स्वागत की तैयारियों में जुटा हुआ था। विश्वविद्यालय को फिर से ए ग्रेड दिलाने के लिए हर क्षेत्र में सुधार किया गया लेकिन नए विश्वविद्यालय में पेड़ों से ज्यादा संख्या पौधों की थी। इसी दौरान विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीडीएस संधू ने एक खबर पढ़ी की चीन में पेड़ों को ही ट्रासप्लाट कर दिया जाता है। इस पर उन्होंने विश्वविद्यालय के कार्यकारी अभियंता एवं हार्टीकल्चर विभाग के अध्यक्ष अशोक अहलावत से बात की। इसके बाद अहलावत ने इस पर काम शुरू किया।
उन्होंने विश्वविद्यालय के जंगल में खड़े 25 से 30 वर्ष पुराने खजूर के 18 पेड़ों को ट्रासप्लाट करवाया। यह कार्य इस वर्ष 5 अप्रैल से शुरू हुआ और लगभग एक सप्ताह में पूरा कर लिया गया। पेड़ों का ट्रासप्लाट पूरी सफल रहता है या नहीं, यह स्पष्ट होने में करीब छह माह का समय लग जाता है। ट्रासप्लाट किए गए 18 पेड़ों में 15 हरे-भरे शान से खड़े हैं। इसके बाद सिंतबर माह में खजूर के 20 और पेड़ों को ट्रासप्लाट किया गया। यह कार्य 20 सितंबर से शुरू हुआ और करीब 10 दिनों में पूरा कर लिया गया। इस चरण की सफलता के बारे में पूरी तरह जानकारी तो मार्च, 2010 में चल पाएगी लेकिन अभी इनमें से सारे पेड़ सुरक्षित व अच्छी हालत में हैं। इसके बाद जब विश्वविद्यालय के गेट नंबर तीन से प्रशासनिक भवन तक सड़क चौड़ी करने का काम शुरू हुआ तो इस काम के आड़े भी 25 पेड़ आ गए। चूंकि पेड़ों को काटना उचित नहीं होता, इसलिए इन पेड़ों को भी अब ट्रासप्लाट किया जा रहा है।
यह काम अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में शुरू हुआ है और दिसंबर के अंत तक इसके पूरा हो जाने की उम्मीद है।
इस तकनीक से विश्वविद्यालय के हार्टीकल्चर विभाग ने दो चरणों में खजूर के 38 पेड़ सफलता से ट्रासप्लाट किए हैं। इसके अलावा सड़क निर्माण के आड़े आ रहे करीब 25 अन्य पेड़ों को भी ट्रासप्लाट करने का कार्य जारी है।
दरअसल पर्यावरणवादी संत के नाम से जुड़े इस विश्वविद्यालय में आधुनिक पर्यावरण संरक्षण की शुरुआत गत अप्रैल माह में तब हुई, जब विश्वविद्यालय प्रशासन नेक [नेशनल एक्त्रिडीशन काउंसिल] की टीम के स्वागत की तैयारियों में जुटा हुआ था। विश्वविद्यालय को फिर से ए ग्रेड दिलाने के लिए हर क्षेत्र में सुधार किया गया लेकिन नए विश्वविद्यालय में पेड़ों से ज्यादा संख्या पौधों की थी। इसी दौरान विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीडीएस संधू ने एक खबर पढ़ी की चीन में पेड़ों को ही ट्रासप्लाट कर दिया जाता है। इस पर उन्होंने विश्वविद्यालय के कार्यकारी अभियंता एवं हार्टीकल्चर विभाग के अध्यक्ष अशोक अहलावत से बात की। इसके बाद अहलावत ने इस पर काम शुरू किया।
उन्होंने विश्वविद्यालय के जंगल में खड़े 25 से 30 वर्ष पुराने खजूर के 18 पेड़ों को ट्रासप्लाट करवाया। यह कार्य इस वर्ष 5 अप्रैल से शुरू हुआ और लगभग एक सप्ताह में पूरा कर लिया गया। पेड़ों का ट्रासप्लाट पूरी सफल रहता है या नहीं, यह स्पष्ट होने में करीब छह माह का समय लग जाता है। ट्रासप्लाट किए गए 18 पेड़ों में 15 हरे-भरे शान से खड़े हैं। इसके बाद सिंतबर माह में खजूर के 20 और पेड़ों को ट्रासप्लाट किया गया। यह कार्य 20 सितंबर से शुरू हुआ और करीब 10 दिनों में पूरा कर लिया गया। इस चरण की सफलता के बारे में पूरी तरह जानकारी तो मार्च, 2010 में चल पाएगी लेकिन अभी इनमें से सारे पेड़ सुरक्षित व अच्छी हालत में हैं। इसके बाद जब विश्वविद्यालय के गेट नंबर तीन से प्रशासनिक भवन तक सड़क चौड़ी करने का काम शुरू हुआ तो इस काम के आड़े भी 25 पेड़ आ गए। चूंकि पेड़ों को काटना उचित नहीं होता, इसलिए इन पेड़ों को भी अब ट्रासप्लाट किया जा रहा है।
यह काम अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में शुरू हुआ है और दिसंबर के अंत तक इसके पूरा हो जाने की उम्मीद है।
रविवार, 22 नवंबर 2009
पति पत्नी संवाद
नई शादी के बाद और शादी के एक वर्ष बाद ... पति पत्नी संवाद ...
पतिः देर किस बात की है।
पत्नीः क्या तुम चाहते हो मैं चली जाऊँ?
पतिः नहीं, ऐसा तो मैं सोच भी नहीं सकता।
पत्नीः क्या तुम मुझे प्यार करते हो?
पतिः अवश्य!
पत्नीः क्या तुमने मुझे कभी धोखा दिया है?
पतिः कभी नहीं! ये तो तुम अच्छी तरह से जानती हो, फिर क्यों पूछ रही हो?
पत्नीः अब क्या तुम मेरा मुख चूमोगे?
पतिः इसके लिये तो मैं तो कोई भी अवसर नहीं छोड़ने वाला।
पत्नीः क्या तुम मुझे मारोगे?
पतिः मुझे क्या पागल कुत्ते ने काटा है जो मैं ऐसा करूँगा?
पत्नीः क्या तुम मुझ पर विश्वास करते हो?
पतिः हाँ!
पत्नीः ओ डार्लिंग!!!
शादी एक वर्ष के बाद के लिये कृपया नीचे से ऊपर पढ़ें।
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पतिः देर किस बात की है।
पत्नीः क्या तुम चाहते हो मैं चली जाऊँ?
पतिः नहीं, ऐसा तो मैं सोच भी नहीं सकता।
पत्नीः क्या तुम मुझे प्यार करते हो?
पतिः अवश्य!
पत्नीः क्या तुमने मुझे कभी धोखा दिया है?
पतिः कभी नहीं! ये तो तुम अच्छी तरह से जानती हो, फिर क्यों पूछ रही हो?
पत्नीः अब क्या तुम मेरा मुख चूमोगे?
पतिः इसके लिये तो मैं तो कोई भी अवसर नहीं छोड़ने वाला।
पत्नीः क्या तुम मुझे मारोगे?
पतिः मुझे क्या पागल कुत्ते ने काटा है जो मैं ऐसा करूँगा?
पत्नीः क्या तुम मुझ पर विश्वास करते हो?
पतिः हाँ!
पत्नीः ओ डार्लिंग!!!
शादी एक वर्ष के बाद के लिये कृपया नीचे से ऊपर पढ़ें।
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शनिवार, 21 नवंबर 2009
कही इन्हे बेचा तो नही गया ?
वाराणसी के अखबारों में एक अच्छी ख़बर पढने को मिली । ख़बर थी जैतपुरा के पश्चात्यावर्ती महिला देखरेख संघठन में रह रही २२ संवासिनियो की जिला प्रशाशन के सहयोग से शादी करा दी गई , इस संगठन को दुसरे शब्दों में महिलाओ की जेल भी कहा जा सकता है जिसमे भूली बिसरी या घर से भाग आई और विवादों में पड़ी महिलाओ को रखा जाता है , इन महिलाओ को इनके परिजनों को संपर्क पर कानूनी प्रक्रिया के बाद वापस कर दिया जाता है । लेकिन बहुत सी लडकिया और महिलाये ऐसे भी है जो वर्षो पड़ी रहती है और उनका हाल जानने कोई नही आता , जिनके लिए जिला प्रसाशन ने वयवस्था कर राखी है की यदि कोई युवक इनसे विवाह करना चाहे तो क़ानूनी प्रक्रिया के तहत विवाह कर सकता है , इसी के तहत शुक्रवार को २२ लडकियों की शादी जिला प्रसाशन ने करा दी ।
२२ लडकिया जिस समय फेरे ले रही थी उस समय एक प्रश्न फ़िर से खड़ा हो गया था की क्या ये लडकिया सही हाथो में जा रही है या इन्हे कही अप्रैल २००६ की तरह पैसे लेकर बेचा तो नही जा रहा है , जी हां , ५ अप्रैल २००६ को एक न्यूज़ चैनल ने स्टिंग आपरेशन में दिखाया था की किस तरह संगठन की तत्कालीन अधीक्षिका गीता पाण्डेय ने महज पाच हजार में एक नपुंसक युवक से एक लड़की की शादी तय कर दी थी , स्टिंग में गीता पाण्डेय को पैसे लेते और ये कहते दिखाया गया था की , नपुंसक है तो कोई बात नही आप लोग दुल्हे का डाक्टर से सर्टिफिकेट बनवा करदे , हमें कागज से मतलब होता है ,
इस ख़बर के बाद गीता को तत्कालीन जिलाधिकारी राजीव अग्रवाल ने निलंबित कर दिया था , परन्तु जाँच के बाद जैसा हर बार होता है गुनाहगार निर्दोष साबित हो गया और गीता पाण्डेय बहाल भी हो गई , तब से कई बार इस चाहरदिवारी में शहनाई बज चुकी है लेकिन इस आवाज में २००६ की घटना की चीख दब जाती है ,और कभी किसी ने जानने की कोशिश नही की आख़िर शादी के बाद इन लडकियों कर क्या होता है ।
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